जो सच भारतीय मीडिया और सरकार नहीं बोल पायी वो सच इस बच्चे ने बोल दिया

पैसों के लालच ने पहलगाम में रचा मौत का खेल अपनों की धोखेबाज़ी में टूरिस्ट बने शिकार
जो सच कोई नहीं बोल पाया जो सच मीडिया नहीं बोल पाया वो सच 7 या 8 साल के बच्चे ने देश की मीडिया के सामने बोल दिया। वो सच वो आईना था जो ये एहसास दिलाता है कि इस देश की सियासत सिर्फ गन्दी नहीं बल्कि घिनौनी हो चुकी है। जहाँ लाशों पर नीलामियां चल रही है। 28 लोगों की जान गई, लेकिन हम और आप सच नहीं बोल। हम सच नहीं बोल सकते
क्योंकि हम सियासी तौर पर बंटे हुए लोग। हम सच नहीं बोल सकते क्योंकि हमें डर लगता है सब बिके हुए। विचारधारा को लेकर पैसों को लेकर अपनी अपनी सोच को लेकर हमारी जबान जो है वो किराये पर चलती है और जब 178 साल के बच्चे ने जिसने अपने पिता की लाश को देखा था
एक दिन पहले जब वो इस देश की मीडिया के सामने इस देश के सामने सच बोलता है तो शर्म आती है क्योंकि उसने वो सच बोला जो देश की मीडिया कोर्ट धार्मिक जमात ए तथा कथित समझदार लोग और 140,00,00,000 की आवाम नहीं बोल पा रही थी। अरे बंद कर दीजिए वो तमाशा जिसमें आप ये कह रहे हैं कि कश्मीर के पहलगाम में जो कुछ हुआ उसमें धर्म नहीं पूछा गया वो सिर्फ आतंकवाद है। नहीं जनाब। कश्मीर में जो कुछ हुआ वो मजहबी खूनी खेल था। और ये कह करके देखिये एक मुसलमान भाई भी मारा है। एक लाश को ढाल बनाकर 27 सच्चाइयों से आप बच नहीं निकल पाए अरे अगर आपने सच बोलने की हिम्मत नहीं है तो खामोश रही है ना और खामोश वो भी रहे जिन्हें सरकार से सवाल पूछने में पसीना आ जाता है।
जो एक सच तो देख लेते हैं कि मरने वाले ने किस वजह से मारा। लेकिन वो दूसरा सच नहीं देख पाते हैं कि सरकार की यह नाकामी थी। हमारे देश में सब का घिनौना तमाशा चलता। एक पक्ष मोदी शाह को गाली दे रहा है लेकिन वो इस्लामिक कट्टरता पर खामोश हो जाता है जबकि वह जानता है वो जानता है कि जिन्हें मारा गया उन्हें सिर्फ इसलिए मारा गया क्योंकि वो हिंदू थे इसके और कोई वजह नहीं थी। और दूसरा जो मज़ा भी मंशा को तो मानता है। लेकिन सरकार पर खामोश रहता है वो ये तो कहता है की देखो इतने सारे गवाह है जो कश्मीर में कह रहे हैं कि मारा गया कलावा दिखाकर पैंट खोलकर कलमा पढ़वा कर लेकिन वो इस बात को नहीं बोल पाते हैं कि कश्मीर में बीते कुछ समय में फौज क्यों कम हुई वह इस बात को नहीं बता पाते हैं
कि 370 और डीमॉनेटाइजेशन के बाद जो दावे किए गए थे वो कहाँ खत्म हो गए वो इस बात को नहीं बता पाते हैं कि हाल के दिनों में जब वक्त का बवाल चल रहा था तो देश
गृह मंत्री ने कहा कि कोई पत्थर अभी नहीं उठा पायेगा। क्योंकि इसी आश्वासन पर ये लोग कश्मीर की उन वादियो में गए थे। यहाँ उन्हें हिंदू होने की वजह से मार दिया गया। और इस देश की जनता से भी मेरा कहना है कि अगर आप को सच काट खाता है तो बेहतर है कि आप खामोश रहीं। लेकिन भगवान के लिए झूठ का ढोल बजाई ये मत बताइए। क्योंकि अगर आप परेशानी को ही पहचान नहीं सकते तो उसके समाधान की तरफ कैसे जाएंगे? और अगर थोड़ी सी भी शर्म बची हो तो सात 8 साल के बच्चे को जाकर सुन लीजिए।
वो बच्चा क्या झूट बोल रहा है वो महिला क्या झूठ बोल रही है क्या उनकी चीखें भी एजेंडा बन चुकी है और अगर अभी भी लगता है तो इंसानियत के गटर में अपनी सोच को फेंक दीजिए, क्योंकि इसके बाद बहस की जरूरत नहीं पड़ती। एक मासूम सा बच्चा टीवी कैमरों के सामने खड़ा होता है और सरकार और मज़ा भी। दरिंदगी दोनों से सवाल करता। उसकी आवाज़ को वो गूंगी मीडिया और मौन समाज नहीं उठा पाया। अफसोस ये है की वो बच्चा दो दिन पहले अपने पिता को खो चुका है पर उसकी समझदारी इस देश की मीडिया इस देश के बुद्धिजीवी वर्ग से कहीं ज्यादा है हम सब से कहीं ज्यादा समझदार वो था।
और उस बच्चे को देखने के बाद हमें अपने आप पर शर्मिंदा होना चाहिए सच बोलना चाहिए। आप सच बोलेंगे पता नहीं लेकिन आज मैं चुप नहीं बैठूंगा आप चाहे जितनी बार मुँह फेर ले आप फिर लीजिये लेकिन मैं मुँह नहीं फिरूंगा और आज सच साफ साफ बोलूँगा क्योंकि सच तेरा सच या मेरा सच नहीं होता सच सिर्फ और सिर्फ सच होता है और सच ये है कि कश्मीर के पहलगाम में जब ये टुरिस्ट वहाँ थे तो आतंकवादी पहुंचे आतंकवादियों ने कहा।
कि जो मुसलमान हैं। वो उधर हो जाओ जो हिंदू है वो उधर हो जाओ। इसके बाद मुसलमानों से कलमा पढ़वा है क्या जो पढ़ लिया वो बच गया और जो नहीं पढ़ पाया उसे घेरकर कतार में बिठाया गया और फिर गोली मार दी गई है इन आतंकवादियों ने सिर पर कैमरा बांध रखा था। ताकि ये दरिंदगी को रिकॉर्ड किया जाए और किसी रोज़ किसी और को। ऐसे ही भड़काने के लिए उस पर फक्र किया जाए जरूर किया जाए। इन लोगों ने पुरुषों को मारा महिलाओं, बच्चों। को छोड़ दिया। एक सच्चे था और दूसरा सच उस सरकार का। जो बेखबर खड़ी थी वो सरकार जिसने कश्मीर को सुरक्षित बताया था वो सो रही थी जब आतंकवादी बगल के बेस कैंप के पास हिंदुओं की पैंट उतरवाकर उन्हें घेरे में बिठाकर एक के बाद एक गोलियां मार रहे थे। यही है सच बाकी जो कुछ है वो सियासी चाटू कांता आधा देश एक तरफ बंटा हुआ है आधा देश एक तरफ बंटा हुआ है और दोनों अपने सच के अलावा बाकी आंख मूंदे बैठे हैं। अरे उस मासूम से बच्चे ने जो देखा, जो सुना वो बताया और उसे सुनकर भी। तुम पूरा सच नहीं बोल पा रहे हो। शर्मा, रिया। और नहीं बोल पा रहे है तो खामोश रहो। यह कहना कि धर्म का कोई लेना देना नहीं। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में 2728 लाशों का सौदा मत करो। कोई मूर्ख नहीं है। कोई मूर्ख नहीं है। हर व्यक्ति ये बात जानता है कि ये हमला हिंदुस्तान पर नहीं था। यह हमला हिंदुओं की पहचान पर था। और इस हमले के पीछे की मज़ा भी नीयत को आप छिपाने की अगर कोशिश कर रहे हो तो इस मुल्क के सबसे बड़े हकदार आप हो। आप शहर को दवा बताकर बांट रहे हो। क्योंकि पहलगाम की गलियों में ना कु शोभा यात्रा थी, ना कोई जय श्रीराम के हूँ का। फिर भी नाम पुष्कर मारा गया, धर्म देखकर मारा गया। कौन सी नई कहानी गढ़ दोगे इस नरसंहार को छिपाने के लिए हाँ यह सच है कि वहाँ पर एक मुस्लिम व्यक्ति की मौत हुई जिसने बचाने की कोशिश की वह घटना अपवाद थी। हाँ, यह सच है। की सारे कश्मीरी या सारे मुसलमान नहीं चाहते थे और यह बिल्कुल सच है। ये सच है। की मजहब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना आतंकवाद की जात नहीं होती आतंकवाद का कोई धर्म नहीं तो ये भी सच है सौ टक्का सच है लेकिन उतना ही सच ये भी है की जिनको मारा गया। उनका धर्म देखकर उन्हें मारा गया अगर वो मुसलमान होते तो नहीं मर जाते क्योंकि वहाँ जो मुसलमान थे वो जिंदा बच गए एक व्यक्ति मारा गया जिसने बंदूक पकड़ने की कोशिश की और उन्हें लगा कि। जिसे इस्लाम को वह मानते हैं आतंकवादी। उसके मकसद नहीं आ रहा था। इसकी सलाम से जो इंसान को बचाने का काम कर रहा था उनका इस्लाम बना था, लेकिन यह सच की मारा गया क्योंकि ये हिंदू थे। और दूसरा सच सरकार का सरकार दौरे कर रही है। गृहमंत्री उसी दिन कश्मीर जाते हैं। प्रधानमंत्री विदेश से दौरा रद्द कर के आते है। नीतीश कुमार के साथ जो उनकी तस्वीर आ रही है, उस पर बहुतेरे सवाल खड़े हो रहे हैं। कश्मीर को लेकर कूटनीतिक फैसले पाकिस्तान से किए गए हैं। सालों पुरानी ट्रीटी को तोड़ा गया है। पाकिस्तान अपनी धमकियों दे रहा है, ये सारी बातें ठीक है। लेकिन सवाल अभी भी सरकार से जिंदा है कि जब आतंकवादियों की गोलियां चल रही थी तब इन्टेलिजन्स कहा थी आगे क्या होगा वो बात की बातें पहले ये बताइए की विदेश नीती कहाँ थी जो भारत की शान बताई जा रही थी वो बॉर्डर सेक्योरिटी कहा थी जीस पर हमें गर्व था वो गरज कहा थी जिसपर कहा गया था कि कोई भी असुरक्षित नहीं रहेगा सच ये है। की लोग मारे गए दावे के बाद आश्वासन के बाद और हम और आप प्रेस कॉन्फ्रेन्स टीवी डिबेट सरकारी बयान पाकिस्तान हिंदुस्तान हिंदू मुसलमान में फंसकर खत्म हो गए सरकार नहीं संभाल पाई ये सच और अगर संभालना होता। ये लोग जिंदा होते। यह बच्चा छोटा सा बच्चा इससे सवाल पूछा गया कि सरकार को लेकर आप क्या सोचते हैं कह रहा है कौन सरकार सरकार को तो कुछ पता ही नहीं है वो 7 .8 साल का बच्चा कह रहा है कि सरकार को कुछ नहीं पता था। वो कह रहा है की नीचे आर्मी बेस कैंप है। 7 साल का बच्चा ये सुझाव दे रहा है कि ऊपर 3. 4 फौजी कम से कम रखने चाहिए थे वो कह रहा है की दो आतंकवादी आकर इतने लोग को मार गए अगर 2 .4 फौजी होते तो शायद यह सब नहीं होता बच जाते लोग जिंदा होते उसने कहा मैं जिंदगी में यहाँ नहीं आऊंगा। और सरकार के लिए यह सच वो आईना है जिसपर सरकार को शर्मिंदगी होनी चाहिए। अगर थोड़ी भी संवेदनशीलता बची हुई है तो। तो कि सरकार की तरफ से किसी ने नहीं कहा की। हमारी भी गलती है लेकिन सच ये है। की लड़े तो जीते नाम सरदार का। और कुछ गलत हो तो सवाल भी सरदार का। तो सरदार भी इस दाग से बच नहीं पाएंगे। वो सवाल से नहीं बच पाएंगे जो उस मासूम बच्चे ने उठाया है। उस मासूम बच्चे ने वो आईना दिखाया है समाज को, सरकार को। जो हमें बता रहा है की हम लाशों पर भी एकजुट नहीं हो पाए। हम लाशों पर भी अपनी अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं अपनी अपनी विचारधारा के हिसाब से सही और गलत का फैसला कर रहे हैं हम उसी को देखकर बट गए। हम सच नहीं बोल सकते वो सच जो 7 .8 साल के बच्चे ने अपने पिता को खोने के बाद कैमरों के सामने कह दिया। वो सवाल सरकार से पूछ लिया। जो शायद उस बच्चे के मुँह पर माइक लगाने वालों को पूछना चाहिए था। और यही सच सच ये भी है कि लोग भावना ये दिखा रहा है लेकिन सरकार को भावनाएँ नहीं दिखानी है, सरकार को कदम उठाना चाहिए। क्योंकि सरकार इमोशन्स दिखाती है तो वो खोखली दलीलें लगती है। सच ये है एक सच और भी है। पाकिस्तान कश्मीर के लिए एकजुट हैं लेकिन हमारे हिंदुस्तान में लोग बंटे हुए हैं और ये हमारी सबसे बड़ी त्रासदी है। इसीलिए कश्मीर की कहानी अब डर की कहानी नहीं है। दिल को चीर देने वाले दर्द की। वो ऑर्डर जो 140 करोड़ हिंदुस्तानियों की रगों में दौड़ रहा है हर सांस को थरथरा रहा है पहलगाम की वादियो में जो थे आज उनकी चीखें गूंज रही है। जिन्होंने अपनों की लाशें देखीं वो भी कांप रहे हैं। जो भाग निकले वो हर आहट पर सिहर उठा रहे हैं। जो कुछ दिन पहले कश्मीर से लौटे थे वो भी थरथरा रहे है की मैं भी हो सकता था कश्मीर जाने वाले जो रह गए वो कह रहे है की अगर हम गए होते तो क्या यह हम होते ये डर कश्मीर का नहीं, हिंदुस्तान का, हिंदुस्तान का और ये सवाल लोगों से है, सरकारों से है की? हिंदुस्तान में हिंदुओं का इतना दर्द क्यों इतना खौफ क्यों सरकार सुरक्षित होने का ढाल ढोल पीटती है तो फिर चुन चुनकर मारा गया क्यों और अगर उनकी हिंदू पहचान पर उनको मारा गया तो इस देश के 140 करोड़ लोगों को ये बोलने में डर क्यों क्यों यह डर है कि हमारा देश हमारा घर फिर भी हम माल ये ऑर्डर कब दूर होगा मुझे पता नहीं लेकिन एक बात जो मैं जानता हूँ यह के बिना इस सच को स्वीकारें इस समस्या का समाधान नहीं होगा आपको स्वीकारना होगा कि इस्लामिक कट्टरपंथियों की वजह से वहाँ पर हिंदुओं की जाग गईं इसका मतलब ये भी नहीं है कि देश के सारे मुसलमानों को हम टारगेट कर रहे हैं लेकिन यह सच है कि इस्लामिक कट्टरपंथ था एक सच्चाई है जो देश के बाकी मुसलमानों को भी परेशान कर रही है। वह भी इस चित्रस्थ लेकिन यह सच। और ये सच श्याम नहीं भाग सकते हैं और दूसरा सच सरकार का। पुलवामा। तब भी सवाल था आज भी सवाल यही लोग जब विपक्ष में थे तो कहते थे की कैसे आतंकवादी आ गया और आज आतंकवादी आया है आपकी सरकार। तो आपको भी सच मानना पड़ेगा क्योंकि समस्या के समाधान से से पहले जरूरी है समस्या की पहचान और अगर समस्या को पहचानने से हमें इनकार कर देंगे तो समाधान तो निकलेगा नहीं आंखें मूँद लेने से हाथ से नहीं टल जाते और अगर आज भी आप नहीं मानते हैं कि ये हमला मज़ा भी नहीं था आज भी आप नहीं मानते हैं कि सरकार की गलती नहीं थी। तो मेरे भाई है मेरे दोस्त। मुझे सुनने वाले आप अगली लाश का इंतजार कर रहे हैं। और ये भी सच है। क्योंकि जो सच से भागते हैं वो सिर्फ कायर नहीं, हत्यारों के मददगार होते
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