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02/05/2025

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संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले. Sangh Modi Yogi Ke Piche Pade Kiski Kursi Jayegi Pahle

संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले

संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले

  • पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान पर हमले का कोई फैसला होने से पहले जातीय जनगणना के फैसले ने भाजपा के भीतर भूचाल ला दिया है। कहा जा रहा है कि ये फैसला संघ ने मोदी की मर्जी के खिलाफ़ जाकर करवाया है

  • अब पूछा जा रहा है कि इसके बाद क्या मोदी का क्या, अमित शाह का क्या और योगी आदित्यनाथ का क्याक्या उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की कुर्सी पर संघ ने अपनी नजरें टेढ़ी कर दी है देखिये ये चर्चा तो अक्सर उड़ती रहती है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नजरें टेढ़ी कर दी है

  • अमित शाह योगी को बिल्कुल पसंद नहीं करते लेकिन योगी मोदी की आंख में आंख डालकर मुख्यमंत्री की कुर्सी न केवल अभी तक बचा ले गए बल्कि कुंभ तक भारी कुव्यवस्था के बावजूद मोदी के हलक में हाथ डालकर बुलवा लिया की योगी जैसा कोई नहीं लेकिन लगता है कि इस बार मामला ज़रा दूर हो गया हैक्योंकि मोदी शाह पर तो है नहीं चल जाती है। संघ पर नहीं चल सकती और जब संघ ने जातीय जनगणना पर मोदी के हाथ से ही राजनीति की चाबी छीन ली तो योगी और शाह का क्या है

संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले

 

संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले

  • देखिये जातीय जनगणना के ऐलान ने योगी आदित्यनाथ की नींद उड़ा दी है क्योंकि वो जातीय समीकरण में ना तीन में आते हैं ना 13 में और यूपी जैसे सबसे बड़े राज्य में संघ किसी भी तरह से इस संदेश को जारी नहीं रख सकता कि वोट तो वो पिछड़ों, दलितों का लेती है और राजा बनाती है

  • करणी सेना की सोच के सरपरस्तों को लिहाजा खबर आ रही है कि दिल्ली और बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश में भी संघ ने कमान अपने हाथ में लेनी शुरू कर दी है। हालांकि यूपी में विधानसभा के चुनाव कम से कम 2 साल दूर है। वहाँ 2027 में चुनाव होंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद आरएसएस 2027 के चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गया है

  • लेकिन उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा है अखिलेश यादव का पीडीए और कांग्रेस का नया नया बहुजन वाद। पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक इस कॉम्बिनेशन ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के छक्के छुड़ा दिए और मोदी को पूर्ण बहुमत हासिल करने से दूर रोक दिया। इसीलिए संघ ने इसकी काट ढूंढनी शुरू की तो उसे समझ में आ गया कि जातीय जनगणना से कम पर लोग उसे सुनने तक को तैयार नहीं होंगे। ऐसे ही नहीं पहलगाम हमले के बाद जारी तनावपूर्ण माहौल में इसका दांव खेला गया। लेकिन क्या यह इतना आसान होगा

  • इसका सबसे सरल जवाब तो ये है की अगर वाकई संघ से लेकर गंभीर है तो सबसे पहले उसे योगी आदित्यनाथ की कुर्सी की कुर्बानी लेनी होगी क्योंकि वोट दलितों, पिछड़ों का और कुर्सी पर ठाकुर साहब सियासत का ये हिसाब वोट के अंक गणित में फिट नहीं बैठता इसी लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू एकता पर फोकस करना है

  • जातीय जनगणना के बाद उसे इस नैरेटिव पर माहौल बनाने में सहूलियत हो सकती है लेकिन ये कब होगा, कैसे होगा, कितना होगा और कब तक पूरा होगा, इसका कोई खाता मोदी के पास नहीं है और लगता नहीं है कि भाजपा के नए अध्यक्ष की घोषणा से पहले अब इस पर बात बढ़ने भी वाली है

  • राहुल गाँधी ने कहा जाती है जनगणना को वैसे ही जुमले की तरह फेंका गया है जिसतरह महिला आरक्षण का फेंका गया था इसीलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में मिली कम सीटों के बाद आरएसएस 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गया है

  • समाजवादी पार्टी के पीडीएस समीकरण को टक्कर देने के लिए आरएसएस जातीय जनगणना के जुमले के बीच सामाजिक समरसता अभियान और वैचारिक रणनीति पर काम कर रहा है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इसके लिए एक फॉर्मूला पेश किया है ये फॉर्मूला है पंच परिवर्तन का इसका मतलब है समाज में पांच बुनियादी बदलाव लाना और पहला बदलाव तो यही है कि बीजेपी के संगठन को नई सामाजिक परिस्थितियों खासकर जाती है जनगणना के बाद समीकरणों के हिसाब से ढालना और इसका सीधा मतलब ये निकलता है की ना योगी चलेंगें और न मोदी चलेंगें संगठन की चाबी आरएसएस अपने हाथों में लेना चाहता यूपी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वयंसेवकों को जो संदेश दिए हैं

  • उससे यही लगता है कि अखिलेश यादव के पीडीएस मॉडल ने उसे हलकान कर रखा है देखिये 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा झटका लगा था समाजवादी पार्टी के पीडीएस समीकरण ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन को 44 सीटें मिली थीं बीजेपी अकेले सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गई राहुल गाँधी संविधान और अंबेडकर के विचारों को। मूलमंत्र बना लेते हैं वो

  • हर जगह सिर्फ जातीय जनगणना और दलितों पिछड़ों, आदिवासियों को उसके हिसाब से भागीदारी और हिस्सेदारी देने की बात करने लगे राहुल गाँधी इस पर जितना ज्यादा बोलते गए भाजपा उतनी ही कतराती गई इसीलिए मोहन भागवत मोदी से मिलने उनके महल पहुंचते हैं और अगले ही दिन जाती है जनगणना का ऐलान हो जाता है

  • ज़रा इस पॉलिटिक्स को समझिए लेकिन इससे कांग्रेस, आरजेडी और समाजवादी पार्टी अपनी जीत बता रही है मोदी तो हमेशा से इसके खिलाफ़ थीं भाजपा के सांसदों ने संसद में जातीय जनगणना की खिल्ली उड़ाई थी

  • दूसरी तरफ कांग्रेस इस पर लगातार जुटी रही खासकर बिहार में दलितों और पिछड़ों को जीस तरह से ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया उसने एक हलचल तो पैदा की है। इस माहौल ने आरएसएस को सोचने पर मजबूर कर दिया ऐसी स्थिति में संघ को लगता है कि भाजपा की वैचारिकी को नई परिस्थितियों के हिसाब से ढाले जाने की जरूरत है और जीस तरह से संगठन को अभी चलाया जा रहा है

  • सरकार को अभी चलाया जा रहा है उससे ये संभव नहीं है इसीलिए वो अभी से सामाजिक समरसता और वैचारिक रणनीति के सहारे 2027 की तैयारी में जुट गया है सामाजिक समरसता मतलब दलितों पिछड़ों की गोलबंदी आरएसएस ने समाज में पंच परिवर्तन का नारा उछाला है

  • हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अलीगढ़ में स्वयंसेवकों से पंच परिवर्तन का जिक्र किया इसका मतलब है समाज में पांच बुनियादी बदलाव इसका मकसद हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव को मिटाना समझिए और एक समरस, संगठित और सांस्कृतिक रूप से एकजुट समाज बनाना गौर कीजिए भागवत के पंच परिवर्तन के तहत एक बार फिर से एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान की बात दोहराई है

  • यह नारा उसी कोशिश का प्रतीक है जो दलितों और पिछड़ों को हिंदू समाज के अंदर एकजुट करने की दिशा में जाती है संघ को लगता है कि इससे अगड़ा पिछड़ा के ऊपर एक नया समीकरण बनेगा भागवत को लगता है कि अगर दलितों पिछड़ों को एक बार फिर से मंदिर मठ आरती अनुष्ठान में झोंक दिया गया तो सामाजिक न्याय का नारा भूलकर जय श्रीराम का उद्घोष करने लगेगा

  • समाज और इससे पीडीए जैसे समीकरणों को सामाजिक स्तर पर चुनौती दी जा सकती है भागवत ने साझा भोजन, सामूहिक त्यौहार और पारिवारिक हवन जैसे प्रतीकों को लेकर आगे बढ़ने की जरूरत पर ज़ोर दिया पीडीए और अंबेडकरवादी राजनीति की काट के तौर पर संगीत बार फिर से हिंदू एकता का झंडा लहराना चाहता है

  • मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को मंत्र दिया है इस सांस्कृतिक जुड़ाव सामाजिक दूरियों को मिटा सकता है उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवकों से कहा कि वो हर घर तक जाएं और उन्हें धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े संघ की यह रणनीति कितनी कारगर होगी ये तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना साफ समझ में आता है कि सांप्रदायिकता के एजेंडे के खिलाफ़ पिछड़ों और दलितों की गोलबंदी

  • भाजपा के लिए नासूर बन चुकी है और ये बात संघ को खटक रही है जातीय जनगणना कराने का श्रेय लूटने के बीच पंच परिवर्तन के जरिये दलितों और पिछड़ों को यह संदेश देने की कोशिश शुरू हो चुकी है कि उनकी सामाजिक भागीदारी दरअसल हिंदू एकता का हिस्सा है अगर संघ ये समझा पाने में थोड़ा सा भी कामयाब हो पाता है तो ये उस सामाजिक समीकरण का नुकसान होगा जिसपर अखिलेश यादव का पीडीए मॉडल खड़ा है

  • लेकिन इसे लेकर तरह तरह के संदेह आरएसएस चाहता है कि सभी लोग हिंदू समाज के मजबूत स्तंभ बने लेकिन उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि 11 साल की सरकार के बाद करोड़ों नौजवान बेरोजगार क्यों है किसानों की हालत इतनी बुरी क्यों है, महंगाई बेलगाम क्यों है और आरक्षण को इस तरीके से ठिकाने क्यों लगाया गया धार्मिक उन्माद की तरफ दलितों और पिछड़ों को ले जाना संघ की एक ऐसी विकल्पहीनता और बेचारगी का नतीजा है, जिसे देश का बच्चा बच्चा समझता है इसकी इकलौती काट संघ के पास यह बचती है की वो यूपी में योगी और केंद्र में मोदी के पर कतरे इसीलिए वो किसी भी सूरत में भाजपा के नए नेतृत्व के सवाल पर मोदी शाह के आगे हथियार डालने को राजी नहीं है

  • उसका सीधा कहना है कि हम अपनी निगरानी में बीजेपी का पुनर्गठन चाहते बिना किसी दखलंदाजी के इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में आरएसएस के बड़े नेता इकट्ठे होने वाले हैं जहाँ भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी इकाई के प्रमुख के चुनाव पर विचार हो सकता है

  • इसका सीधा मतलब होगा योगी मोदी दोनों के पर कतरने की शुरुआत हो चुकी है इसका एक और बड़ा मतलब है संघ ने भले ही इसका ऐलान ना किया हो लेकिन असल में वह मान चुका है कि संघ केवल सांस्कृतिक और वैचारिक संस्थान नहीं है उसकी राजनीतिक सक्रियता बताती हैं कि वो अब राजनीति में सीधी दखल देने जा रहा है और इसके तहत भाजपा के निर्णायक कुर्सियों पर अपने लोगों को बैठाना चाहता है

  • लेकिन जो संघ का बुनियादी ढांचा है उसमें दलितों, पिछड़ों को कितने प्रभावी पदों पर बैठाया जाएगा यह अपने आप में बहुत संदेहास्पद है, क्योंकि कल्याण सिंह से लेकर उमा भारती, बंगारू लक्ष्मण, विनय कटियार, जे पी में जीस तरह से इस्तेमाल करके दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका गया वो केवल अनुशासन का मामला नहीं है,

  • उससे कहीं बहुत ज्यादा सवर्णवादी जातिवाद का मामला है। जातीय जनगणना के शोर में इस सच से बीजेपी चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकती

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One response to “संघ मोदी योगी के पीछे पड़े किसकी कुर्सी जाएगी पहले. Sangh Modi Yogi Ke Piche Pade Kiski Kursi Jayegi Pahle”

  1. […] हालांकि सरकारी बैंक में एमसीएलआर से जुड़े लोन का हिस्सा 51% है जबकि निजी बैंको के लिए यह सिर्फ 13% है इसलिए रेपो रेट में भी कटौती के बाद भी। होम लोन की ईएमआइ उतनी नहीं घटी है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि बैंको ने रेपो रेट कटौती का सिर्फ 20-30 प्रतिशत फायदा ग्राहकों तक पहुंचाया […]

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