उमर अब्दुल्लाह ने नरेंद्र मोदी को दिखाया आइना.मोदीजी को उमर अब्दुल्लाह से सीखना चाहिए

मोदीजी को उमरअब्दुल्लाह से सीखना चाहिए
जिसकी पूरी जिम्मेदारी थी वो पहलगाम के कत्लेआम को चुनावी मुद्दा बनाने में जुटा हुआ है और जिसकी कोई जिम्मेदारी नहीं थी वो बैठकर आंसू बहा रहा है। पूछ रहा है की बताओ मेरे कश्मीर के लोगों में किस को क्या जवाब दूँ मेरे शब्द खत्म हो गए। जम्मू कश्मीर विधानसभा में उमर अब्दुल्ला का संबोधन पूरे देश को सुनना चाहिए खासकर नरेंद्र मोदी को अमित शाह को अजीत डोभाल को भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इसलिए सुनना चाहिए की वो सीख सकें। बड़े नेता कैसे होते है
उनका दिल कितना विशाल होता है। 28 अप्रैल को पहलगाम हमले में मारे गए पर्यटकों को श्रद्धांजलि देने के लिए जम्मू कश्मीर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था। इस सत्र में अपनी बात रखते रखते मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आंसू छलछला आए। उन्होंने कहा मेजबान होने के नाते मैं सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था। इन लोगों के परिजनों से मैं कैसे माफी मांगूं मेरे पास कोई शब्द नहीं है। उम्र से। मोदी को इसलिए सीखने की जरूरत है कि पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करने के बाद राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की यहाँ तक की सिक्योरिटी कमांड की बैठक स मुख्यमंत्री को निकाल दिया गया
जबकि राज्य के चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी वहीं बैठे रहे। बावजूद इसके उमर अब्दुल्ला ने मोदी की तरह इस पर राजनीति करने की कोई कोशिश नहीं की। की हम होते तो लाल लाल आग करके पता नहीं क्या करते थे। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर की सुरक्षा राज्य के लोगों की चुनी हुई हुकूमत की जिम्मेदारी नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री और पर्यटन मंत्री होने के नाते मैंने उन्हें बुलाया था। मेजबान होने के नाते यह मेरी जिम्मेदारी थी कि उन्हें सुरक्षित वापस भेजता लेकिन मैं भेज नहीं पाया। उमर ने कहा कि उन बच्चों से क्या कहता जिन्होंने अपने यानी पिता को खून में लिपटा हुआ देखा उसने भी अफसर की विधवा को क्या कहूँ
जिन्हें शादी किये हुए ही कुछ दिन हुए थे। कुछ लोगों ने पूछा कि क्या कसूर था हमारा हम पहली बार कश्मीर आए थे। छुट्टी मनाने के लिए इस छुट्टी का जिंदगी भर खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उमर अब्दुल्ला ने कहा, यकीन नहीं होता कि चंद दिन पहले हमें सदन में थे और बजट पर अन्य मुद्दों पर बहस चली। सदन स्थगित होते होते। हम यह उम्मीद कर रहे थे कि श्रीनगर में दोबारा मुलाकात होगी। किसने सोचा था कि जम्मू कश्मीर में ऐसे हालात बनेंगे की दोबारा यहाँ मिलना पड़ेगा। सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि स्पीकर साहब आप के आसपास वो लोग बैठे हैं जिन्होंने खुद अपने रिश्तेदारों को कुर्बान होते देखा है। हम में से कितने ही हैं जिन पर हमले हुए हैं। हम चाहते हैं कि सदन के तरफ से हमले की निंदा की जाए। मारे गए 26 परिवारों के साथ हम हमदर्दी ज़ाहिर कर सके। कहलगांव थे
उन। 26 लोगों के दुख दर्द को इतना समझती है। जितना जम्मू कश्मीर का अपना ये असेम्बली। स्पीकर साहब दाएं बाएं देखिए। आपके सामने वो लोग बैठे हैं। झूमे। मैं खुद अपने करीब किसी करीबी रिश्तेदार को कुर्बान होते हुए देखा। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक पूरा देश इस हमले की चपेट में आया है। ये पहला हमला नहीं था। हमने कई हमले होते हुए देखे है। हमने अमरनाथ यात्रा डोडा के गांव में हमले देखें। कश्मीरी पंडितों की बस्तियों पर हमले देखे, सिख बस्तियों पर हमले देखे। फिर हमें लगा कि सब ठीक हो रहा है। का हमला 21 साल के बाद इतना बड़ा हमला है। ये हमला सिविल इन्स पर सबसे बड़ा हमला है। ये हमारा मुस्तकबिल नहीं है। ये हमारे अतीत की कहानी है।
अब लगता है कि अगला हमला कहा पर होगा। मेरे पास अल्फाज नहीं थे की क्या बोलू, मरने वालों के घर वालों से माफी कैसे मांगो। उमर अब्दुल्ला के अनुरोध पर राज्य के विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि ऐसे आतंकी हमले कश्मीरियत, देश की एकता शांति और सद्भावना पर सीधा हमला है। विधानसभा ने पीड़ितों और उनके परिवारों के प्रति। गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए उनके दुख में सहभागी बनने का संकल्प जताया। विधानसभा में एक सुर में जम्मू और कश्मीर के लोगों की ओर से हमले के बाद दिखाई गई एकजुटता करुणा और साहस की सराहना की गई। प्रस्ताव में ये भी बताया गया कि प्रदेश भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए और लोगों ने पर्यटकों का समर्थन किया
विधानसभा ने केंद्र सरकार की कैबिनेट सुरक्षा समिति यानी सीसीएस की बैठक में पाकिस्तान को लेकर उठाए गए कदमों का भी समर्थन किया गया। वहीं पर्यटकों को बचाने की कोशिश में अपनी जान गवाने वाले चालक सैयद आदिल हुसैन शाह को भी श्रद्धांजलि दी गयी। इस प्रस्ताव के जरिए जम्मू कश्मीर विधानसभा ने देशभर के राज्यों। और केंद्रशासित प्रदेशों से आग्रह किया
है कि वो कश्मीरी छात्रों और नागरिको की सुरक्षा सुनिश्चित करे और उनके साथ किसी भी तरह के भेदभाव या उत्पीड़न को रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं। आपको बता दें कि पहलगाम हमले पर सीएम उमर अब्दुल्ला का विधानसभा में यह पहला भाषण था। विधानसभा का यह विशेष सत्र सिर्फ पहले आम हमले में मारे गए सैलानियों को श्रद्धांजलि देने और हमले के खिलाफ़ निंदा प्रस्ताव पारित करने के लिए बुलाया गया था।
ये प्रस्ताव उपमुख्यमंत्री सुरेंद्र चौधरी ने पेश किया। सत्र की शुरुआत में सदस्यों ने हमले में मारे गए 26 लोगों की याद में 2 मिनट का मौन भी रखा। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हथियारबंद ऑपरेशन की सीमा को लेकर आगाह करते हुए कहा कि हम बंदूक के जरिये उग्रवाद को केवल नियंत्रित कर सकते हैं उसे खत्म नहीं कर सकते। ये खत्म तब होगा जब लोग हमारे साथ होंगे। अब लोग वहाँ तक पहुँच रहे हैं। कुल मिलाकर उमर अब्दुल्ला ने एक सधा हुआ
भाषण दिया है। पूरे भाषण में कहीं भी खुद को ज्यादा होशियार तेज तर्रार या दूसरों को कमतर साबित करने का कोई भाव नहीं था। अब्दुल्ला चाहते हैं तो वो इसका पूरा कसूर धारा 370 को खत्म करने के बाद की परिस्थितियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और गृहमंत्री के निकम्मेपन या प्रधानमंत्री की लापरवाही पर डालकर एक अलग किस्म का नैरेटिव चला सकते थे। आखिरकार केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में कबूल किया है। तो उससे चूक हुई है। पुणे के टैक्सी वालों तक को पता था कि बैंस रन घाटी खुली हुई हैं लेकिन मोदी को इसकी हवा तक नहीं थी लेकिन उमर अब्दुल्ला इसका फायदा नहीं उठाते। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया।
इसीलिए नरेंद्र मोदी को इस तरह के भाषणों को बार बार सुनना चाहिए। याद कीजिए नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले के बाद। खाड़ी देश का दौरा रद्द कर दिया था लेकिन रद्द करने के बाद वो गए, कहा और किया क्या वो कश्मीर नहीं जाते हैं राष्ट्र के नाम संबोधन नहीं करते हैं बिहार जाकर चुनावी भाषण देते हैं कि मिट्टी में मिला दूंगा। भारत की आत्मा पर। हमला करने का दुस्साहस किया। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ। जिन्होंने। ये हमला किया है। उन आतंकियों को और इस हमले की साजिश रचने वालों को। उनकी कल्पना से भी बड़ी। सजा हम मिले गी। अब आतंकियों की। बच्ची खुशी जमीन को भी। मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है। इस तरह की बातें बचकानी नजर आती है। राजनेताओं के मुँह से ऐसी शोभा नहीं देती
इसके बाद मन की बात में भी उन्होंने उसी तरह की बातें की मुझे अहसास है हर भारतीय का खून आतंकी हमले की तस्वीरों को देखकर खौल रहा है। पहलगाम में हुआ ये हमला। आतंक के सरपरस्तों की हताशा को दिखाता है। उनकी कायरता को दिखाता। ऐसे समय में। जब कश्मीर में शांति लौट रही थी। स्कूल कॉलेजों में एक वाइब्रन्सी थी। निर्माण कार्यों में अभूतपूर्व गति आयी थी। लोकतंत्र मजबूत हो रहा था। पर्यटकों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही थी। लोगों की कमाई बढ़ रही थी। युवाओं के लिए नए अवसर तैयार हो रहे थे। देश के दुश्मनों को। जम्मू कश्मीर के दुश्मनों को ये रास नहीं आया। मोदी ने कहा कि कश्मीर में लौट रही शांति विकास और लोकतंत्र की मजबूती से आतंक के सरपरस्तों को परेशानी हो रही थी इसलिए उन्होंने इस कायराना हमले को अंजाम दिया। उन्होंने आश्वासन दिया
कि दोषियों को कठोरतम जवाब दिया जाएगा और पीड़ितों को न्याय मिलकर रहेगा। किस सवाल है कि ये हमला हुआ ही क्यों? और अभी तक इसकी जांच क्यों नहीं हुई है वैसे जांच तो पुलवामा हमले की भी नहीं हुई है। ये सारी बातें उठाई जा सकती थी लेकिन उमर अब्दुल्ला ने नहीं उठाई। क्योंकि हालात की भी एक गरिमा होती है जिसे नरेंद्र मोदी मानते हैं और ना ही इसका मान रखते। इसीलिए उमर अब्दुल्ला को सुनना जरूरी है
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