क्या मोदी ने अब्दुल को टाइट करने के चक्कर में देश को पीछे ढकेला है

क्या मोदी ने अब्दुल को टाइट करने के चक्कर में देश को पीछे ढकेला है
क्या मोदी ने अब्दुल को टाइट करने के चक्कर में देश को पीछे ढकेला है
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बहुत सीधे सवाल से शुरू करते हैं क्या 11 साल प्रधानमंत्री रहने के बाद भी मोदी से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति राहुल गाँधी को समझ में आती उन से सीखने की जरूरत है जब मोदी गहरी नींद में डूबे हुए थे, राहुल गाँधी ने हालात के बारे में देश को आगाह किया और मोदी की तरह किसी चुनावी सभा में नहीं किया
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संसद के फ्लोर पर किया एक वीडियो बहुत वायरल है जब राहुल ने पुराने वाले संसद भवन में कहा था ये भारत का असली दुश्मन पाकिस्तान नहीं चीन है
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इस बात पर तब भाजपा के लोगों ने राहुल गाँधी की खिल्ली उड़ाई थी, लेकिन आज उन सबके चेहरे उतरे हुए भक्तों को लग रहा है की उनके साथ धोखा हो गया और नीचता की हद देखिए सरकार के सीजफायर के फैसले के बाद उनकी कुछ समझ में नहीं आया तो इसकी सूचना देने वाले विदेश सचिव विक्रम मिस्री के परिवार के बारे में ही भद्दी भद्दी बातें करने लगी खैर इसको यही छोड़ते हैं,
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लेकिन अब जबकि दोनों तरफ से मिसाइलें शांत पड़ चुकी है और सीमावर्ती इलाकों के लोग कुछ राहत की सांस ले रहे हैं तो इस बात पर चर्चा जरूरी है कि इस जंग ने मोदी को मजबूत बनाया है या कमजोर और दूसरा सवाल इसमें पाकिस्तान को बढ़त हासिल हुई है या भारत को या फिर किसी तीसरे देश

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जब तक मोदी पर जनता जनार्दन का आशीर्वाद है
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कांग्रेस वाले तुम कश्मीर में कुछ नहीं कर पाओगे हम आगाह करना चाहते हैं कि टीवी चैनलों पर मत जाइए वहाँ स्टुडिओ की छतों से लटके हुए उल्लू खबरों के नाम पर भाव भाव कर रहे हैं टीवी के एंकर पागलों की तरह व्यवहार करते नजर आए अपना अलग रिपब्लिक बनाकर बैठे एक स्वयं भू स्वामी का तो मानसिक संतुलन बिगड़ चुका है और उसकी सही जगह पागल खाना है या आदमी किसी गली के छटे हुए गुंडे की तरह चैनल पर बैठकर दहशत पैदा करने की कोशिश करता है
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चैनलों की हैसियत नहीं है पूछने की की क्या मोदी ने कश्मीर पर अमेरिका की मध्यस्थता स्वीकार कर ली है और अगर नहीं स्वीकार की है तो सरकार खुलकर कहती क्यों नहीं की डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं देश जानना चाहता है कि मोदी की घिग्गी क्यों बंधी हुई है वो न सर्वदलीय बैठक का सामना करना चाहते हैं और ना ही संसद का विपक्ष कई बार विशेष सत्र बुलवाने की मांग कर चुका है
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सबने एक सुर में समर्थन किया अब सरकार का और प्रधानमंत्री का लेकिन सीजफायर के बाद बदली हुई परिस्थितियों में मोदी के लिए एक विचित्र स्थिति तो पैदा हो ही गई है इस हालात में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की जगह और उसकी साख की बात करने की दरकार थी और सबसे पहली बात तो यही है की लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच थी ही नहीं ये लड़ाई थी भारत और चीन के बीच केवल थिएटर पाकिस्तान था
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खुद को विश्व गुरु समझने वाले तब राहुल गाँधी को पप्पू साबित करने पर तुले थे आज ट्रंप ने जब उन्हें खुद दुनिया की नजरों में पप्पू बना दिया है तो उनके चेले पो पो कर रहे हैं। ये मोदी की वैश्विक तौर पर भारी नाकामी है नैतिकता को दांव पर लगाकर इजराइल को गले लगाने के बावजूद अमेरिका ने जंग के बीच आइएमएफ से पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का भारी भरकम कर्जा मंजूर करा दिया ये मोदी राज़ में भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक हार है मोदी जैसे लौह पुरुष और चैनलों को विश्व गुरु के राज़ में पहली बार दुनिया को यह संदेश गया है
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कि भारत अमेरिका के पिट्ठू की तरह है और वो वही करेगा जो अमेरिका चाहता है और अब उसकी इतनी हिम्मत हो गई है कि खुलेआम कश्मीर पर मध्यस्थता की बात करने लगा अभी भी इस समय जब मोदी को हिंदू मुसलमान के झगड़े में देश को झोंकने के लिए दिन रात सोचने की बजाय कुछ ठोस काम करना चाहिए मंगलसूत्र और भैस बेचने का फर्जी अभियान चलाने की बजाय एक प्रधानमंत्री का मन देश के लिए वास्तविक काम करने में लगाना चाहिए गौर कीजिए मोदी के इजराइल अमेरिका प्रेम के चक्कर में भारत ने रूस जैसे भरोसेमंद साझीदार तक को खो दिया इतना कुछ हो जाने के बाद भी रूस ने एक शब्द भारत के समर्थन में खुलकर नहीं कहा उल्टा वो चीन की मैं नहीं आती बुरी लगेगी बात लेकिन उन्होंने वैश्विक धरातल पर भारत सरकार की साख को कम किया है। कूटनीतिक संबंध
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बनाना एक लंबी प्रक्रिया होती है कई बार ये दशकों दर्शक चलती है। मोदी ने उसे तहस तहस किया है इजराइल को गले लगाने के लिए उन्होंने ईरान को खो दिया और ईरान से भारत के सचेत दूरी ने रूस को नाराज कर दिया आप इस लड़ाई में देखे हैं आप के समर्थन में कौन कौन दिखा है, जो रूस हमेशा हमारे साथ खड़ा होता था
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हर संकट में वो हमारे साथ नहीं दिखे आज प्रधानमंत्री जी अमेरिका परस्त हो गए हैं लेकिन अमेरिका ने उसका पहला बयान क्या था उसको ध्यान में रखिएगा तो आज हमारे साथ ना पड़ोसी देश हमारे साथ है ना विश्व में हमारा कोई साथ देने वाला स्पष्ट रूप से जब संकट आया तो खड़ा होने वाला कौन सा देश हुआ मोदी अक्सर नेहरू को लेकर अपनी कुंठाओं का इजहार करते रहते हैं
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नेहरू जब 1951 में तुर्की के दौरे पर गए थे तो वहाँ के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मुहम्मद ब्रजलाल ने उन्हें दुर्लभ वैश्विक समझ वाला एक महान नेता बताया था मोदी के यात्री आते स्थितियां हो गई कि तुर्की ने खुलकर भारत के खिलाफ़ पाकिस्तान की मदद की ऐसा इसलिए हुआ की नरेंद्र मोदी की अपनी कूटनीतिक समझ बहुत कमजोर सचमुच के विश्व नेता अपनी अंतर्राष्ट्रीय समझ के लिए किसी अफसर या सलाहकार पर इतने ज्यादा निर्भर नहीं होते डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर भारत को सार्वजनिक तौर पर नीचा दिखाया है
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और सरकार की हिम्मत नहीं हो रही है क्या ये कहना अतिशयोक्ति होगी कि जो प्रधानमंत्री दिन रात यही सोचता रहता हो कि विपक्ष के नेताओं को नीचा कैसे दिखाया जाए, उसकी बौद्धिक हैसियत ही नहीं है लोकतंत्र के वास्तविक मूल्यों को समझने और उसकी गौरवशाली परंपराओं को आगे ले जाने की इसे कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए
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इस सात दशक से हर सरकार में जारी ठोस कश्मीर नीती को मोदी सरकार में एक शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है आज से पहले किसी भी देश की सरकार या नेता की ये हिम्मत नहीं होती थी सोचने की भी की वो खुलेआम ऐलान कर दें उसने दखल देकर भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया है ये आने वाले दिनों में वो कश्मीर पर मध्यस्थता करना चाहता है या करेगा,
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लेकिन हम इससे ज्यादा जरूरी सवाल पर लौटते हैं देखिये फिलहाल भले ही युद्धविराम हो चुका है, लेकिन इस विराम की उम्र इतनी भी नहीं होगी की चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को किनारे रख दें चीन कुछ ना कुछ ऐसा करता रहेगा कि भारत अस्थिर रहे ट्रम्प को अभी तक भारत ने झूठा नहीं कहा तो कह सकते हैं कि अमेरिकी दबाव में भारत ने जीस तरह से अपने पैर खींचें है या उसे खींचने पड़े हैं
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उससे चीन के मुँह में खून लग चुका है वो समझ चुका है कि पाकिस्तान के कंधे पर मिसाइलें और एयर डिफेंस सिस्टम रखकर वो आसानी से भारत के खिलाफ़ एक छद्म युद्ध छेड़ सकता है कहने का मतलब ये की ना टालने से काम चलने वाला है और ना ही आंख बंद कर लेने से अंततः एक न 1 दिन भारत को चीन का सीधा सामना करना ही पड़ेगा
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इसलिए तैयारी चीन के हिसाब से होनी चाहिए गौर कीजिए युद्धविराम की घोषणा के तुरंत बाद पाकिस्तान के समर्थन में चीन ने जैसा बयान दिया उससे यही साबित होता है कि चीन का ये पालतू तो पहले हमे आज भारत को खुद ढूंढना होगा इस बात से भारत का बच्चा बच्चा वाकिफ हो चुका है कि मोदी की जुबान नहीं खुलती चीन को सख्त संदेश देने के लिए रही बात अमेरिका की तो अगर आज पाकिस्तान खंडित होने से बचा हुआ है तो उसके पीछे कठमुल्लों और आर्मी के बाद अमेरिकी डॉलर की ताकत है
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लड़ाई के बीच आइएमएफ का पाकिस्तान को एक बिलियन डॉलर का लोन देना क्या साबित करता है सिवाय इसके कि अमेरिका पाकिस्तान को हर हाल में बचाकर रखना चाहता है वरना पाकिस्तान इतने तरह के आंतरिक संघर्षों से जूझ रहा है की एक आध टुकड़ा अब तक और हो ही चुका होता लेकिन भारत को नियंत्रित करने के लिए एक पागल पाकिस्तान अमेरिका की भी जरूरत है और चीन की भी इसलिए पाकिस्तान जैसा है वैसा ही बना रहेगा और उसे बनाकर रखेंगे चीन और अमेरिका बल्कि इसकी आशंका ज्यादा है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ़ आतंकवादी अभियान और तेज करेगा इसका एक ही समाधान है ताकत और वो ताकत पाकिस्तान के मुकाबिल नहीं चीन के मुकाबिल होनी चाहिए और ये तब तक नहीं हो सकता जब तक सत्ताधारी संगठनों के सबसे बड़े पोस्टर बौ से लेकर पोस्टर चिपकाने वालों तक का इकलौता एजेंडा अब्दुल को टाइट करना ना रहें
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