इस्राइली आतंक के खिलाफ इस्लामिक देशों ने खोला मोर्चा

इस्राइली आतंक के खिलाफ इस्लामिक देशों ने खोला मोर्चा
काम कला ऑफिस रेली, आतंकवाद नहीं कर सका वो काम ईरान के खिलाफ़ इसराइल की बेशर्मी ओने कर दिया है और वो काम है इसराइल के विरुद्ध इस्लामिक देशों को एकजुट कर देने का अमेरिका के सनकी बादशाह डॉनल्ड ट्रंप की सारी चालाकी, धूर्तता और मक्कारी उलटी पड़ती चली जा रही है वहीं बेंजामिन नेतन्याहू के लिए भी अपने देश में मुश्किलें बढ़ती जा रही है
देखिए कि दुनिया के 21 मुस्लिम बहुल देशों ने इजराइल के खिलाफ़ एक संयुक्त बयान जारी किया है इस बयान में ईरान के खिलाफ़ इजराइल की बढ़ती सैन्य आक्रामकता की कड़ी निंदा की गई आपको हम लगातार बता रहे हैं कि इसराइल और ईरान के बीच 13 जून के बाद से कैसी भीषण लड़ाई छिड़ी हुई है
लेकिन इसकी शुरुआत इजराइल ने की थी। इसके बाद आत्मरक्षा में जब ईरान ने जवाबी कार्रवाई शुरू की तो वो बिलबिला उठा और ईरान के नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने लगा आपने देखा होगा ईरान के सरकारी टीवी चैनल पर जिस समय कल समाचार पढ़ रही थी, ठीक उसी समय चैनल की बिल्डिंग पर इज़राइली मिसाइल आकर गिरता है इजराइल ने ईरान के परमाणु संयंत्रों समेत राजधानी तेहरान और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है
इस्राइली हमलों में अब तक कम से कम 600 इरानी नागरिक को की मौत हो चुकी है, जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं वहीं ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए इजराइल की राजधानी तेल अवीव को निशाना बनाया है इन हमलों में 30 से ज्यादा इस्राइली नागरिक मारे गए हैं, वहीं 600 से ज्यादा घायल हैं
इजराइल सोच रहा था कि ईरान अलग थलग पड़ जाएगा दुनिया से क्योंकि डॉनल्ड ट्रम्प ने अपनी दिखाकर अरब देशों की जुबान बंद कर दी थी वहीं पाकिस्तान उसका पिट्ठू हैं और बाकियों को भी अलग अलग तरीके से किनारे कर रखा था
लेकिन पांच दिनों की लड़ाई के बाद मुस्लिम बहुल देशों ने अमेरिकी दादागिरी के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया पूरा अरब इसराइल को लेकर अमेरिका के खिलाफ़ होता हुआ नजर आ रहा है
हालांकि ये इतना सीधा सच्चा और सरल मामला होता नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है इस बयान के अनुसार अल्जीरिया, बहरीन जिबूती, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लीबिया, मॉरिटेनिया, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, सोमालिया, सूडान, तुर्की, ओमान, यमन और संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्रियों ने इसराइल की कार्रवाइयों पर बेहद नाराजगी जताई है और तत्काल युद्धविराम करने और तनाव कम करने की अपील जारी की
मिस्टर के नेतृत्व में जारी किए गए इस संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि इसराइल के हमले अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर दोनों के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करते हैं इन देशों के विदेश मंत्रियों ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर बल देते हुए राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के महत्त्व पर ज़ोर बयान में कहा गया है कि ईरान के खिलाफ़ हाल ही में इजराइल की आक्रामकता पूरे क्षेत्र के शांति और स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा है
मुस्लिम बहुल देशों का संयुक्त बयान कहता है कि हम शत्रुता को तत्काल रोकने और आगे होने वाली वृद्धि को रोकने के लिए राजनयिक संवाद की वापसी का आह्वान करते हैं मंत्रियों ने इजरायल के परमाणु कार्यक्रम और इसे लेकर अमेरिका के दोहरी नीती को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए
देखिए अमेरिका कहता है कि इसराइल तो परमाणु हथियार बना भी सकता है और रख भी सकता है लेकिन ईरान नहीं कर सकता कनाडा में जी सेवन की बैठक में शामिल देशों ने भी संयुक्त बयान जारी करके ऐसी ही बात की है इजराइल के पास आपको रक्षा का अधिकार है, लेकिन ईरान के पास नहीं है
अब देखिये कि जीस दिन जी सेवन के देश ये बयान जारी करते हैं ठीक उसी दिन 21 मुस्लिम बहुल देश इसके विरोध में अपना संयुक्त बयान जारी करते हैं ये संयुक्त बयान परमाणु हथियारों और सामूहिक विनाश के अन्य हथियारों से मुक्त मध्य पूर्व क्षेत्र के निर्माण का आह्वान करता है साथ ही कहता है कि सभी क्षेत्रीय देशों को परमाणु हथियारों के अप्रसार यानी एनपीटी संधि में शामिल होना चाहिए
ये मांग दीर्घकालिक क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावकों के अनुरूप यहाँ एक बात पर गौर कीजिए ईरान ने तो परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, लेकिन इस्राइल शुरू से भागता रहा है आपको बता दें कि ईरान ने 1 जुलाई 1968 को ही परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर दिए थे और 2 फरवरी 1970 को इसे ईरान के संसद में अनुमोदित भी कर दिया इसके बाद वह गैर परमाणु हथियार राज्य यानी नॉन न्यूक्लियर वेपन स्टेट के रूप में संधि का सदस्य बन गया
ईरान का दावा है की उसका जो परमाणु कार्यक्रम
चल रहा है वह शांतिपूर्ण उद्देश्यों जैसे ऊर्जा उत्पादन और अनुसंधान भर के लिए, लेकिन अमेरिका इसे नहीं मानता इजराइल के हमले के बाद 16 जून 2025 को तो ईरान ने घोषणा कर डाली कि उसकी संसद एनपीटी से बाहर निकलने के लिए एक विधेयक तैयार कर रही है
जिसका कारण इजरायल के हमले और क्षेत्रीय तनाव है आपको बता दें कि इरानी परमाणु कार्यक्रम ओके निगरानी, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आइएईए ये भी करता रहा है वहीं दूसरी तरफ इजराइल ने ना तो कभी एनपीटी पर हस्ताक्षर किए हैं और नाही इसे अनुमोदित किया है इजराइल की पूरी परमाणु नीती परमाणु और स्पष्टता पर आधारित है
ओबेसिटी पर आधारित है। इसके तहत वो ना तो अपने परमाणु हथियारों की मौजूदगी की पुष्टि करता है और ना ही इसका खंडन करता है जबकि माना जाता है कि इसराइल के पास 90 से लेकर 400 के बीच परमाणु हथियार हो सकते हैं लेकिन ना तो वो एनपीटी का हिस्सा है और ना ही उसने अपने परमाणु कार्यक्रम ओपर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षण को स्वीकार किया है
इजराइल की दलील है कि क्षेत्र में शांति स्थापित होने तक वो परमाणु नियंत्रण संधियों में शामिल नहीं होगा मतलब अमेरिका के सारी फर्जी नैतिकता और दादागिरी जो है वो केवल और केवल ईरान के लिए 21 मुस्लिम बहुल देशों ने जो संयुक्त बयान जारी किया है उसमें इसका खासतौर पर जिक्र है विदेश मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की निगरानी में आने वाली परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी सुविधाओं पर कोई भी हमला ना केवल अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है बल्कि 1949 के सम्मेलनों में उल्लेखित मानवीय सिद्धांतों का भी उल्लंघन है
अब देखिये कि पिछले दिनों शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ ने भी बयान जारी करके ईरान पर इस्राइल के हमलों की निंदा की भारत 10 देशों के इस संगठन का सदस्य देश हैं इसमें चीन के अलावा रूस, पाकिस्तान, कजाखस्तान, उसपेकिस्तान और बेलारूस जैसे देश शामिल हैं
ईरान भी इसका सदस्य देश हैं बावजूद इसके भारत में एससीओ के बयान से अपने आप को अलग कर लिया विदेश मंत्रालय ने बकायदा सफाई दी कि भारत ने इस बयान पर चर्चा में हिस्सा ही नहीं लिया इसके बाद 13 जून को उसने अलग से एक बयान जारी करके मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव पर गहरी चिंता ज़ाहिर की और दोनों पक्षों से संयम बरतने, हिंसा से बचने और बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर लौटने का आग्रह किया
आपको बता दें कि भारत ने इस मामले में अपने आप को पूरी तरह से दोनों देशों से किनारे रखा हुआ है और इसके पीछे कारण ये है की नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भारत ने इजराइल को तवज्जो देने की रणनीति बनाई है
इसीलिए एससीओ का सदस्य देश होने के बावजूद उसने उसके बयान पर हस्ताक्षर नहीं किये क्योंकि उसे लगता है कि इसराइल इससे नाराज हो सकता है लेकिन बावजूद इसके ईरान को अलग थलग करने की कोशिशे बुरी तरह धराशायी होती नजर आ रही है
देखिए कि गज़ा पर हमले के बाद भी 21 इस्लामिक देश कभी साथ नहीं है, लेकिन ईरान को लेकर धीरे धीरे मोर्चाबंदी शुरू होने लगी है अगर इजरायल के हमले इसी तरह जारी रहे तो इसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं
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