राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सुप्रीम कोर्ट पर पलटवार और पूछा 14 सवाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सुप्रीम कोर्ट पर पलटवार और पूछा 14 सवाल
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया सुप्रीम कोर्ट पर पलटवार और पूछा 14 सवाल
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8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था पिछले जस्टिस थे जो संजीव खन्ना साहब सीजेआइ उन्होंने वो फैसला दिया था हालांकि उस मुददे पर चर्चा करने से पहले मैं आपको यह बता दूँ कि कल नए सीजीआइ बीआर गवई साहब ने देश के 52 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण कर ली इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सभी प्रमुख मंत्री, परिषद के लोग और गणमान्य लोग उस कार्यक्रम में मौजूद रहें
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जो प्रोटोकोल का हिस्सा भी है यह राष्ट्रपति भवन में होता है कार्यक्रम और वहाँ पर ये कार्यक्रम आयोजित किया गया और जैसे ही गवई साहब नए सीजी बने उनके सामने एक धमाका हो गया धमाका ये हो गया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनसे 14 सवाल पूछ डाले ये 14 सवाल किस बारे में पूछ डाले उस का कनेक्शन सीधे 8 अप्रैल के फैसले से है पहले 8 अप्रैल के फैसले के बारे में मैं आपको बताता हूँ
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कि 8 अप्रैल का फैसला क्या था दरअसल ये था के तमिलनाडु गवर्नर और तमिलनाडु की सरकार के बीच में विवाद चल रहा था के साहब ये हमारे बिल पास होते हैं विधेयक पास होते हैं यह उन्हें अपने पास रोक कर रखते हैं उन्हें ना उन पर अपनी सहमति नहीं देते हैं और हमें दिक्कत का सामना करना पड़ता है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पूछे गए चौदह सवाल
1 – जब राज्यपाल के सामने कोई बिल आता है तो उनके पास कौन कौन से संवैधानिक विकल्प होते ह
2 – क्या राज्यपाल फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं
3 – क्या राज्यपाल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है
4 – क्या आर्टिकल 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह रोक सकती है
5 – अगर संविधान में राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या अदालत कोई समय सीमा तय कर सकती है
6 – क्या राष्ट्रपति के फैसले को भी अदालत में चुनौती दी जा सकती है
7 – क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है
8 – क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर कानून लागू होने से पहले ही अदालत सुनवाई कर सकती है
9 – क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले को बदल सकता है
10 – क्या राज्य विधानसभा द्वारा पारित कानून राज्यपाल की स्वीकृति का बिना लागू होता है
11 – क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच को भेजना अनिवार्य ह
12 – क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश आदेश दे सकता है जो संविधान या वर्तमान कानूनों से मेल न खाता हो
13 – क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है
14 – आप हमें आदेश दे रहे हो तो ये बता दो कि आखिरकार हमारे अधिकारों की समय सीमा क्या है हमारे अधिकार कहाँ तक है
अब उसमें संजीव खन्ना साहब की अदालत ने यह फैसला दे दिया कि तीन महीने के भीतर गवर्नर को किसी भी भेजे गए बिल पर फैसला लेना लाजिमी होगा और अगर वो तीन महीने से ज्यादा का समय लेते हैं तो वो ऑलरेडी कानून माना जाएगा और यह गवर्नर और राष्ट्रपति दोनों पर लागू होगा देखिये कितना बड़ा के न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका से भी ऊपर हो रही है जो संसद कानून पास कर रही है, उसके कानून को आप इस तरीके से कर रहे हैं
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सेवक का कानून था, उसको रोकने की पूरी पूरी कोशिश की गई संजीव खन्ना साहब के समय में हालांकि अभी वो मामला केस में चल रहा है एक बार फिर से नई पीठ बनेगी व कानून पर भी और गंवई साहब के नेतृत्व में नई टीम उस पर काम करेगी पता नहीं आगे क्या होगा, लेकिन जो अधिकारों की लड़ाई है वो शुरू हो चुकी थी

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और मुझे लगता है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी इंतज़ार कर रही थी कि यह संजीव खन्ना साहब जाए, नए सीजीआई आए और उनके सामने यह 14 सवाल दाग दिए जाए हालांकि इसका इस फैसले का प्रतिरोध उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कन्टिन्यूअस कर रहे थे जिंस भी कार्यक्रम में पिछले दो महीने में गए हैं जगदीप धनकड़ उन्होंने इस फैसले की सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की
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साहब आप ऐसे कैसे कह सकते हैं यह तीनों अपने अपने कार्यक्षेत्र के मास्टर है कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका इनका तो काम है। की अपने अपने क्षेत्र में रहे और दूसरे के क्षेत्र का अतिक्रमण ना करे किसी को भी एक दूसरे के फैसले को रिव्यु करने का अधिकार नहीं है, ना ही आप उस पर सवाल खड़े कर सकते हैं
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जगदीप धनखड़ ने तो यहाँ तक कह दिया था कि क्या हम सुप्रीम कोर्ट को बताते हैं कि किसी मामले में आपको क्या फैसला देना है और आप हमे डायरेक्शन देंगे कि गवर्नर फैसला दे और एक राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद उसको आप डायरेक्शन दे रहे हैं,
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सुप्रीम कोर्ट के साहब आप को फैसला देना होगा और मैं बताता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट ने जो उसमें चार पॉइंट्स खासतौर से खड़े किए थे उसमें ये कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिये इस स्थिति में राष्ट्रपति को मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा की मंजूरी नहीं दे रहे हैं
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चलिए ठीक है, कर लिया वो उनकी मर्जी है, देंगे या नहीं देंगे दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की या एक समीक्षा की जा सकती है अब यहाँ से लोचा शुरू हो जाता है अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा अदालत ने ये भी कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा
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तीसरा पॉइंट सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समयसीमा तय हो तो वाजिब टाइमलाइन के भीतर फैसला करना चाहिए राष्ट्रपति को बिल मिलने के तीन महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा यदि देरी होती है तो देरी के कारण बताने होंगे बताइए राष्ट्रपति को कारण बताने होंगे जिंस राष्ट्रपति के एक साइन से कहीं भी राष्ट्रपति शासन लग जाता है किसी की भी सरकार चली जाती है, किसी की भी सरकार आ जाती है उसे तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा बिल पर और यह बाध्य करेगा सुप्रीम कोर्ट
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चौथा और अंतिम अदालत ने ये भी कहा था कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं विधानसभाओं से फिर से पास करती है तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसिशन लेना होगा और बार बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी
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बताइए साहब ये हाल हुआ था और जगदीप धनखड़ ने 17 अप्रैल को राज्यसभा इन्टर्न का एक ग्रुप आया था वहा पर उनको संबोधित कर रहे थे उन्होंने कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियां के खिलाफ़ 2047 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है जज सुपर पार्लमेंट की तरह काम कर रहे हैं
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एक अधिकार है 142 उसका उसमें इस्तेमाल किया जा रहा था तब 142 का तो सुप्रीम कोर्ट ने इस्तेमाल किया अब केंद्र सरकार ने 14 31 का इस्तेमाल किया है और उन्होंने यह कहा कि राष्ट्रपति ने अपने प्रेसिडेन्टिअल अधिकारों के तहत सुप्रीम कोर्ट से जवाब मांगा है कि आप बताइए कि क्या आप इस तरीके से अमुक अमुक मुद्दों पर हमें? इस तरीके से निर्देशित कर सकते हैं
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और क्या हमारे विवाद सारे सुप्रीम कोर्ट ही सुलझाएगा कानून में इसका और कोई प्रावधान नहीं है और मैं बताऊँ कि अब अगर राष्ट्रपति ने ये सवाल पूछ लिए है तो इस पर भी एक कानूनी बाध्यता है इस पर एक संविधानपीठ बनानी होगी कम से कम पांच जजों की जस्टिस गवई साहब उसका फैसला लेंगे निश्चित रूप से और उसके बाद यह तय किया जाएगा मैं आपको बताऊँ भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी इस मुद्दों को जोरशोर से उठाने की शुरुआत की थी
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हालांकि उन्होंने जो वक्त वाला बिल गया था सुप्रीम कोर्ट में संजय संजीव खन्ना जीस समय सीजीआई थे और उन्होंने कुछ सवाल खड़े कर दिए थे तो उस संदर्भ में निशिकांत दुबे ने ये कह दिया था कि जस्टिस संजीव खन्ना की वजह से देश गृह युद्ध की स्थिति पर हैं, एक सिविल वॉर छिड़ने जा रही है इस पर उन पर अवमानना का केस भी किसी ने किया था अलग ही उसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपना बड़े दिखाया और कहा की नहीं, अवमानना की जो मामला था उसे हम एंटरटेन नहीं करेंगे लेकिन निशिकांत दुबे की आलोचना जरूर की गई थी कि इस तरह का बयान उन्हें नहीं देना चाहिए था
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बीजेपी ने भी उससे अपना किनारा कर लिया था अध्यक्ष हैं जो उन्होंने भी कह दिया था कि साहब ये ये एक बात उनकी निजी राय है लेकिन जो आक्रोश निशिकांतबे का था, वो सभी का था बस बात ये थी की कोई कह नहीं रहे थे और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जिन्हें अब तक सब लोग ये समझ रहे थे कि वो एक डमी है। केवल वो फैसले इस तरह के लेती है
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एकतरफा फैसले लेती है या ज्यादा उखाड़ पछाड़ में बिलीव नहीं करतीं उन्होंने यह इस तरह का डिसिजन लिया निश्चित रूप से केंद्र सरकार की सिफारिश के बाद ही लिया गया होगा केंद्र सरकार की तरफ से ही प्रस्ताव आया होगा लेकिन मुर्मू ने 14 सवाल पूछकर सुप्रीम कोर्ट को भी कटघरे में खड़े करने का काम किया है। इस पर आगे क्या होगा मैं नहीं जानता कानूनी दांव पेंच इस पर कैसे चलेंगे हम आपको समय समय पर बताते रहेंगे
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लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि यह मामला जब सेटल होगा इस पर जो फाइनल डिसिशन आएगा वो एक ऐतिहासिक फैसला होगा
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