भारत पाकिस्तान जंग में अमरीका किसके साथ है

भारत पाकिस्तान जंग में अमरीका किसके साथ है
कश्मीर पहलहाम में हुए हमले के बाद दुनिया भर के इस ज्यादातर देशों ने इसकी निंदा और भारत के प्रति अपनी संवेदना जताई है। इस हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। इस बात की चर्चा होने लगी है की ये तनाव अगर सैन्य कार्रवाई की पड़ा तो अमेरिका का रुख कैसा रहेगा
वो किसकी तरफ अपना झुकाव रखेग पहले ये जान लेते हैं कि अमेरिका ने पहलगाम हमले पर अभी तक इस तरह की प्रतिक्रिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूत सोशल पर लिखा कि कश्मीर से एक अत्यंत दुखद खबर आ रही है। आतंक की इस लड़ाई में अमेरिका भारत के साथ खड़ा है।
प्रधानमंत्री मोदी और भारत के लोगों को हमारा पूर्ण समर्थन है और गहरी सहानुभूति है। ट्रंप ने ये भी कहा था कि वो भारत और पाकिस्तान दोनों के गरीब है। पहलगाम में हमला हुआ उस वक्त अमेरिकी। राष्ट्रपति जेडी वैन्स अपने परिवार समेत भारत की आत्मा प्रति उन्होंने भी इस हमले के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना जताई थी। अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड में टैक्स पर भारत को अमेरिकी समर्थन की बात दोहराई और लिखा कि हम पहलगाम में 26 हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए भीषण इसलामी चरमपंथी हमले के खिलाफ़।
भारत के साथ एकजुटता से खड़े हैं। मेरी प्रार्थनाएँ और गहरी संवेदनाएं उन लोगों के साथ हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है। इस जघन्य हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ़ कार्रवाई में आपके साथ हैं। क्या अमेरिकी नेताओं के इन बयानों से ये माना जा सकता है कि अमेरिका का समर्थन भारत के पक्ष में होगा। मिडल ईस्ट इनसाइट्स प्लैटफॉर्म के संस्थापक डॉक्टर चौधरी कहती है की अमेरिका का भारत की तरफ से ज्यादा झुकाव है और इसके दो कारण हैं। एक तो ये की भारत को हार का सदस्य है। दूसरी वजह ये कि अभी अमेरिका और चीन में टैरिफ वॉर चल रहा है और चीन पाकिस्तान एक दूसरे के काफी करीब है
तो अमेरिका की नजर इस पर रहेंगी। हालांकि सुविधा चौधरी ये भी कहती है की जो भी फैसला लेने से पहले अमेरिकी खुफिया विभाग यह जानकारी जुटाएगा की पहलगाम में हुआ क्या था और कैसे हुआ था और इस तनाव का आने वाले समय में क्या असर होगा। जहाँ तक बात है कि क्या अमेरिका सीधे इस तनाव में शामिल हो सकता है तो ऐसा नहीं होगा। वो आप प्रत्यक्ष तौर पर अपने सहयोगी सऊदी अरब के जरिये इस मामले में दखल दे सकता है। पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में बढ़े तनाव के बीच कुछ देशों ने कूटनीतिक प्रयास भी शुरू कर दिए। सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने जहाँ भारत और पाकिस्तान के अपने समकक्षों से बात की है, वहीं ईरान के विदेश मंत्री ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं
कि पाकिस्तान से अमेरिका के पुराने मजबूत संबंध रहे हैं। साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी कहते है की अगर सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका किसी के साथ नहीं है। हाल के दिनों में उसके भारत के साथ संबंध बेहतर हुए हैं, लेकिन वो पाकिस्तान का रणनीति साझेदार रहा है। दोनों के बीच सैन्य संबंध भी रहे हैं। वैसे हाल ही में अमेरिकी वाणिज्य विभाग में पाकिस्तान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात समेत आठ देशों की 70 कंपनियों पर निर्यात प्रतिबंध लगाया था, जिसमें पाकिस्तान की 19 कंपनियां शामिल हैं। अमेरिकी सरकार ने दावा किया था कि जिन संस्थाओं पर पाबंदी लगाई गई है वह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीती के हितों के विरुद्ध काम कर रही है। हालांकि धनंजय त्रिपाठी मानते हैं कि पाकिस्तान के खिलाफ़ कुछ कार्रवाइयों के बावजूद भी वो भारत को एशिया के इस क्षेत्र में पूरी छूट नहीं देना चाहता है। नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीती विभाग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष वी पंत भी मानते हैं
कि ऐसे मामलों में अमेरिका किसी देश के पक्ष में नहीं रहेगा बल्कि वो अपना पक्ष देखेगा। हर्ष वी पंत कहते हैं कि फिलहाल अमेरिका की प्रतिक्रिया हमारे पक्ष में रही है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात हो जाते हैं। जो भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और ना ही अमेरिका किसी सक्रिय भूमिका में रहेगा। राष्ट्रपति ट्रंप रूस और यूक्रेन में जारी जंग को भी खत्म करने में लगे हैं। ट्रम्प के मौजूदा से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था में उथल पुथल मची हुई है। ऐसे में विदेश मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि अमेरिका यही चाहेगा।
कि भारत और पाकिस्तान के बीच ये मामला बातचीत से हल हो जाए क्योंकि वो पहले से ही कई मोर्चों पर उलझा हुआ है।
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