नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे Contactgrexnews@gmail.com ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , बर्मा भारत से अलग कैसे हुआ बर्मा भारत के साथ रहना क्यों नहीं चाहता था » Grex News Hindi
25/05/2025

Grex News Hindi

Latest Online Breaking News Hindi

बर्मा भारत से अलग कैसे हुआ बर्मा भारत के साथ रहना क्यों नहीं चाहता था

बर्मा भारत से अलग कैसे हुआ बर्मा भारत के साथ रहना क्यों नहीं चाहता था

बर्मा भारत से अलग कैसे हुआ बर्मा भारत के साथ रहना क्यों नहीं चाहता था

  • भारत में जब लोगों ने अखबार पढ़ा तो वो गम और गुस्से से भर गए असल में अप्रैल 1937 में अंग्रेजों के द्वारा भारत में एक नया संविधान लाया गया देश में संविधान का विरोध शुरू हो गया लेकिन इस विरोध के बीच में नए संविधान से भारत का एक हिस्सा बहुत खुश था इतना खुश था कि वहाँ पर 1 अप्रैल के दिन छुट्टी कर दी गई जश्न मनाए गए ऐसा कोई और नहीं बल्कि म्यांमार था

  • संविधान में कहा गया था कि म्यांमार को ब्रिटेन आजाद कर देगा जी हाँ, साल 1937 तक बर्मा यानी आज का म्यांमार भारत का ही हिस्सा था लेकिन भारत का हिस्सा कब बना और ये भारत से अलग क्यों हुआ आज में यही कहानी मैं आपको सुनाने वाला हूँ क्योंकि अपना इतिहास नहीं जानोगे, तो खुद को कैसे पगचानोगे

  • 1 अप्रैल 1937 के दिन म्यांमार को भारत से अलग कर दिया गया ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज सिक्स ने घोषणा की आज भारतीय साम्राज्य का हिस्सा नहीं रहा उन्होंने आगे कहा कि अगर यह देश भारत से स्वतंत्र होकर आगे बढ़े तो देश को बेहतर सेवा मिलेगी लेकिन म्यांमार यानी वर्मा भारत का हिस्सा कब और कैसे बना देखिये भारत और म्यांमार के बीच के रिलेशन प्राचीन काल से ही चले आए है

  • भारत से ही बुद्धिज्म म्यांमार में फैला था दोनों के ही बीच लंबे अरसे तक ट्रेड भी होता था नॉर्थ ईस्ट के स्टेट, खास तौर पर मणिपुर वगैरह यहाँ से जुड़े हुए थे जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कंट्रोल हुआ तब म्यांमार के साथ भी अंग्रेज़ों का स्ट्रगल शुरू हो गया किसी स्ट्रगल में 1885 में बर्मा वार हुई इस वॉर का नतीजा ये निकला कि म्यांमार हार गया और भारत की तरह ही म्यांमार भी अंग्रेजों के कब्जे में आ गया

  • फिर जैसे कलकत्ता से भारत का शासन देखा जाता था 1911 तक वैसे ही म्यांमार की पॉलिटिक्स को भी कलकत्ता से ही चलाया जाने लगा इसी में 1857 के विद्रोह के नेता मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को कैद करके रखा गया था और यही उन्हें बाद में दफनाया भी गया फिर बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक भी बर्मा की मांडले जेल में कैद रहे हैं रंगून और मांडले की जेलों में कई भारतीयों ने अपनी शहादत दी ब्रिटिश काल के दौरान लेकिन म्यांमार के लोगों को ये बात पसंद नहीं थी

  • वो भारत के साथ नहीं रहना चाहते थे इस बात को अंग्रेजों ने भी नोटिस किया और साल 1918 में एक बार इसको लेकर कोशिश भी की गई लेकिन वर्ल्ड वॉर के टाइम पर वर्मा को भारत का हिस्सा बने रहने दिया गया वर्मा के लोकल लोगों को लगता था कि म्यांमार के लोगों के हक का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाहरी लोगों को मिल रहा है

  • इस फीलिंग के पीछे एक बहुत बड़ी वजह थी सागौन के पेड़ जी हाँ, दरअसल बर्मा में सागौन के बड़े बड़े पेड़ होते थे और ये इंडस्ट्री यहाँ बहुत डेवलप थी म्यांमार के लोगों को लगने लगा था की चाइना और भारत से आने वाले लोग असल में उनकी जमीन पर होने वाले सागौन इंडस्ट्री का फायदा उठा रहे हैं अब साल 1918 में तो इस पर बात नहीं बनी लेकिन 1920 के दशक के शुरुआत से ही बर्मा के अलग होने की मांग उठने लगी थी

  • वर्मा के लोगों के बीच वर्मा के विधायक माउंट बाय नहीं 1922 में बर्मा के भारतीय साम्राज्य से अलग होने के सवाल पर एक कमिटी बनाने की सिफारिश की लेकिन उनकी ये डिमांड जो थी वो विधान परिषद के अध्यक्ष ने ये कहकर रिजेक्ट कर दी कि यह बहुत आगे की बात है पहले वर्मा का अपना बेहतर संविधान तो हो लेकिन इसके बाद और भी प्रस्ताव आने शुरू हो गए 1924 में भी यहाँ की विधानसभा ने ऐसा ही एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारत से अलग होने की बात लिखी गई थी

  • लेकिन इसमें भारत को लेकर कोई नफरत नहीं थी फिर अगला टर्निंग पॉइंट आता है 1928 में जब भारत में आता है साइमन कमीशन

  • साइमन कमीशन का भारत में तो खूब विरोध हुआ लेकिन इस कमिशन के सामने बर्मा सरकार ने एक सीक्रेट अपील रखी की भारत से बर्मा को अलग कर दिया जाए कहा गया कि बर्मा और भारत की जनसंख्या में बहुत बड़ा अंतर है दोनों देशों की जियोग्राफी भी काफी अलग है जिसमें कॉन्टैक्ट बनाये रख पाना बहुत मुश्किल है एक तरह की यह भी दिया गया की 1044 तक भारत और बर्मा के बीच बहुत कम याद नहीं के बराबर का कॉन्टैक्ट था

  • भारतीय एक अलग समुदाय से आते हैं। उनका एक अलग इतिहास एक अलग धर्म, अलग भाषाएं, एक अलग सामाजिक व्यवस्था, अलग रीती रिवाज और जीवन के प्रति एक अलग नजरिया है इसके साथ ही वर्मा ने ये भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि भारत में अंग्रेजों के जाने के बाद सेना एकजुट भी हो सकती है उनके लिए इमेजिन कर पाना बहुत मुश्किल था कि मद्रासी बंगाली, ब्राह्मण, सिख, पंजाबी और पठानों की एक ही रेजिमेंट और एक ही कंपनी में एक साथ भर्ती हो सकती है ये वो दौर था जब बर्मा

  • लेबर और कोयले जैसी चीजों के लिए भारत पर डिपेंडेंट था और भारत चावल, धान, पेट्रोल और सागौन के लिए वर्मा पर डिपेंडेंट था यानी कि दोनों देश आपस में जुड़े हुए थे इसको ध्यान में रखते हुए वर्मा की तरफ से कहा गया कि भारत से अलग होने पर कुछ समय के लिए अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा इस नुकसान को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कहा कि यह लगाव आपसी सहमति और सद्भावना के साथ होना चाहिए इसमें कोई नाराजगी या कड़वाहट नहीं होनी चाहिए

  • अब इस तरह की बातें इस ज्ञापन में लिखी गई थी और इन सब बातों को ध्यान में रखने के बाद साइमन कमिशन ने तुरंत प्रभाव से साल 1930 में बर्मा को भारत से अलग करने का फैसला कर दिया इस पर ब्रिटेन में बैठे अंग्रेज सरकार मान भी गईं, लेकिन इससे पहले ये तय किया गया कि एक पहले इलेक्शन करा लेते हैं साल 1932 में इलेक्शन कराए गए

  • इसी बीच सेपरेशन पार्टी के सामने डॉक्टर बाबा की एंट्री से ऑपरेशन लीग खड़ी हो गई जो म्यांमार के अलग होने के विरोध में थी सबको लग रहा था कि म्यांमार में सेपरेशन लीग जीत जाएगी, लेकिन किसी भी पक्ष को 45 सीटों का बहुमत नहीं मिल पाया इतना ही नहीं सेपरेशन लीक को 29 सीटें ही मिलीं, जबकि ऐन्टी से ऑपरेशन लीग को 42 सीटें मिलीं इससे कन्क्लूशन ये निकला कि बर्मा के ज्यादातर लोग अलग ही नहीं होना चाहते

  • लेकिन फिर भी अंग्रेजों ने इस विभाजन को मान्यता दे दी अंग्रेजों ने ये माना कि बर्मा के लोग अपने मन की बात नहीं जानते इसीलिए साल 1935 में गवर्नमेंट ऑफ बर्मा 1935 लाया गया इसमें कहा गया कि 1 अप्रैल 1937 से बर्मा भारत से अलग हो जाएगा और आगे चलकर यही हुआ वैसे जब बर्मा अलग हुआ तो यहाँ रहने वाले इन्डियन्स पर कोई खास असर पड़ा नहीं अगले साल 1938 में सिचुएशन थोड़ी सी बदल गई जब यहाँ पर ऐन्टी इंडियन दंगे शुरू हुए लेकिन इसके बावजूद 1942 तक रंगून जैसे शहर में कई इंडियन्स रह रहे थे

  • हालांकि 1942 में जब सेकंड हुआ तो कहीं इंडियन्स को बर्मा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा लेकिन वर्ल्ड वॉर खत्म होने के बाद वो वापस वर्मा गए आजादी के बाद भी बर्मा में अच्छे खासे इंडियन्स रहते थे लेकिन फिर जब 1962 मैं मान सकता पलट हुआ और एक तानाशाह सरकार आई तो उसने यहाँ रहने वाले इंडियन्स को देश निकाला दे दिया इस तरह से इन्डियन्स और बर्मा के बीच का कनेक्शन कमजोर होकर बिखर गया तो दोस्तों, ये था इतिहास भारत से बर्मा के अलग होने का

इसे भी पढ़े

  1. क्या सच में मोदी जी के खून में गरमा गरम सिन्दूर दौड़ रहा है ,या हमें बेवाकूफ बना रहे है

  2. कैसे चीन ने कब्जा कर लिया भारत का ये हिस्सा

  3. शेख हसीना की बांग्लादेश में होगी वापसी, बांग्लादेश अब पाकिस्तान की तरह बर्बादी के रास्ते पर

  4. अर्णब गोस्वामी सोनिया और राहुल गाँधी से माफ़ी के लिए नाक रगड़ रहा है .अर्णब गोस्वामी इस बार लम्बा नपेगा

  5. मौत की कगार पर पंहुचा इराक ,तुर्की की मनमानी की वजह से क्या ISIS की वापसी हो सकती है

  6. 76% कैदी बिना सजा के जेलों में बंद है करोडो केस कोर्ट में पेंडिंग है बड़ा खुलासा

  7. क्या बलूचिस्तान भारत का हिस्सा बनेगा. इससे क्या फायदा और क्या नुकसान होगा

 

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

One response to “बर्मा भारत से अलग कैसे हुआ बर्मा भारत के साथ रहना क्यों नहीं चाहता था”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *