ईडी को बहुत भारी पड़ गया सुप्रीम कोर्ट के वकील से उलझना

ईडी को बहुत भारी पड़ गया सुप्रीम कोर्ट के वकील से उलझना
हद कर दी है अब वो वकीलों से उलझ गया है उसका कहना है कि जिन लोगों पर उसने मुकदमे किए हैं, उनके वकीलों को भी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए इंतिहा तो यह हो गई कि उसने सुप्रीम कोर्ट के एक बहुत ही दिग्गज सीनियर ऐडवोकेट को नोटिस भेज दिया
क्योंकि वो ये कैसे मुवक्किल का मुकदमा लड़ रहे हैं, जिसे ईडी ने फंसा रखा है ईडी की हिम्मत देखिए कि उसने यहाँ तक पूछ लिया कि आपने अपने मुवक्किल को क्या कानूनी राय दी इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के वकील और भीड़ आमने सामने आ गए हैं
देखिये, पहले तो ऐडवोकेट दातार ने इस पर आपत्ति जताई और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड असोसिएशन यानी स्काउट नहीं, ईडी को घसीट लिया
दातार ने ईडी के अफसरों से कहा कि वकीलों को उनके मुवक्किलों से जुड़ी जांच के लिए नहीं बुलाया जा सकता उन्होंने यह भी कहा कि वकीलों को अपने मुवक्किलों को दी गई कानूनी सलाह का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता
आप ऐसा नहीं कर सकत आपको बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय पिछले कुछ महीनों में अपने काम करने के तौर तरीकों को लेकर कई बार एक बार नहीं सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ चुका है
लेकिन इस बार मामला ज़रा अलग है क्योंकि उसने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर ऐडवोकेट अरविन्द दातार को मुकदमा लड़ने की वजह से संबंध भेज दिया नहीं इसे लेकर बेहद कड़ी आपत्ति जताई है इसके निखिल जैन ने चिट्ठी लिखकर ईडी की कार्रवाई को बेहद आपत्तिजनक और नाकाबिले बर्दाश्त करार दिया है
स्कोरा ने ईडी की कार्रवाई को लेकर कड़ी अस्वीकृति और स्पष्ट निंदा ज़ाहिर करते हुए कहा कि यह बेहद अनुचित है और कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को खतरा पहुंचाता है सकुरा सेक्रेटरी ने लिखा, दातार एक अत्यंत सम्मानित सीनियर ऐडवोकेट हैं और उनकी ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठता है बार के एक सीनियर सदस्य को उनकी पेशेवर जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए समन भेजना अधिकारों का दुरुपयोग है और वकील की भूमिका की पवित्रता का अपमान है
स्कोडा ने अपने बयान में कहा, मुकदमा लड़ने की वजह से किसी वकील को संबंध भेजने की ईडी की कार्रवाई न केवल अनुचित है बल्कि जांच के दायरे में शामिल करने की एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति को दिखाती है और वकालत के पेशे की स्वतंत्रता को खतरे में डालती है
ईडी की यह कार्रवाई कानून के शासन की नींव को कमजोर करती है। स्कोर आने सख्त बयान जारी करते हुए कहा कि जांच एजेंसी या जब कानूनी राय देने की वजह से वकीलों के खिलाफ़ बलपूर्वक उपाय करती है तो वो ना केवल व्यक्तियों को निशाना बनाती है बल्कि न्याय सुनिश्चित करने वाले संस्थागत ढांचे पर भी हमला करती है
सीडी की इस हरकत को स्वीकार करना संभव नहीं है क्योंकि वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता को कमजोर करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ही खतरे में डालता है, क्योंकि दोनों एक साथ खड़े होते हैं या गिरते हैं। लड़खड़ाते एडवोकेट असोसिएशन ने ईडी को फटकार लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में माना है
वकील केवल कानूनी राय देने की वजह से अपने मुवक्किलों के कथित कृत्यों के लिए उत्तरदायी नहीं हो जाते ईडी की कार्रवाई कानूनी सलाह को आपराधिक मिली भगत से जोड़ती है, जो संवैधानिक रूप से न्यायिक प्रक्रिया को चोट पहुंचाने वाला है और कानूनी रूप से अनुचित है। यह कदम बड़े पैमाने पर कानूनी समुदाय को एक डरावना संदेश भेजता है
इतना ही नहीं ये प्रत्येक नागरिक के बिना किसी डर या धमकी के स्वतंत्र कानूनी सलाह हासिल करने के मूलभूत अधिकार को भी खतरे में डालता है अगर वकीलों को कानूनी सलाह देने के लिए कोई सेंट्रल एजेंसी ताकत के दम पर जबरदस्ती निशाना बनाना लगेगी तो ये कानूनी प्रणाली के कामकाज को पंगु बना देगा और न्याय तंत्र में जनता के विश्वास को खत्म कर देगा सीनियर ऐडवोकेट दातार को समन भेजने के मामले ने इतना ज़ोर पकड़ लिया की ईड कांप उठा
उसने अपना सम्मान वापस ही ले लिया, लेकिन इससे ऐडवोकेट असोसिएशन का गुस्सा और उसके चिंताएं कम नहीं हुई उसने लिखा, भले ही ऐडवोकेट दफ्तर के खिलाफ़ जारी समन को बाद में ईडी ने वापस ले लिया हो, लेकिन इस एजेंसियों द्वारा कार्यकारी शक्ति के मनमाने इस्तेमाल के खिलाफ़ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराता है
उसने बार और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किया है। असोसिएशन ने कहा, ये कदम बड़े पैमाने पर कानूनी समुदाय को एक भयावह संदेश भेजता है और प्रत्येक नागरिक के बिना किसी डर या भय के स्वतंत्र कानूनी परामर्श हासिल करने के मूलभूत अधिकार को मुश्किल में डालता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बार की स्वतंत्रता हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के दो
स्तंभ निर्भीक और स्वतंत्र वकीलों के बिना अदालतों का संचालन असंभव है आपको बता दें कि अडवोकेट दातार रेलीगरे एंटरप्राइज़ की पूर्व चेयरपर्सन रश्मि सलूजा को केर हेल्थ इन्श्योरेन्स मैं कर्मचारियों को जारी की गई हिस्सेदारी में घपलेबाजी के ईडी के आरोपों पर सलाह दे रहे हैं
ईडी ने ऐडवोकेट दातार से पूछा था कि आपने अपनी मुवक्किल को क्या सलाह दी है और आप इसके बारे में क्या जानते हैं वकीलों के ऐतराज के बाद ईडी की तरफ से जारी संबंध वापस ले लिया गया लेकिन उसकी नीयत की पोल पट्टी खुल गई
आपको याद दिला दें कि इसी तरह 2019 में ईडी और सीबीआइ ने मानवाधिकार के मामलों को प्रमुखता से उठाने वाले सीनियर ऐडवोकेट स् आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह के संगठन लॉयर्स कलेक्टिव के दफ्तरों और उनके घरों पर छापेमारी की थी और बहाना ये बनाया था कि ये कार्रवाई विदेशी फंडिंग में एफसीआरए नियमों का उल्लंघन के मामले में की गई है
अब ज़रा आरोप में सुन लीजिये लेकिन हँसने पर पाबंदी है। लॉयर्स कलेक्टिव पर आरोप था कि उन्होंने बेहद संवेदनशील मामलों में नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के खिलाफ़ मुकदमे लड़े जिसके कारण उन्हें निशाना बनाया गया। सीनियर ऐडवोकेट आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध यानी बदले की कार्रवाई बताया था। इस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई थी, लेकिन छापेमारी का व्यापक विरोध हुआ था आपको बता दें कि ईडी को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट यानी पीएम लिए 2002 के तहत बेहिसाब शक्तियां हासिल हैं, जिसमें बिना वारंट के तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी का अधिकार भी शामिल है कानूनी तौर पर ईडी को लगता है कि कोई वकील मनी लॉन्ड्रिंग या आर्थिक अपराध में संलिप्त है तो वह उसके खिलाफ़ कार्रवाई कर सकता है, भले उसके पास उस समय इसका कोई सबूत ना हो
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