मोदी से नाराज चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार की बढ़ी मुश्किलें

मोदी से नाराज चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार की बढ़ी मुश्किलें
मोदी से नाराज चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार की बढ़ी मुश्किलें
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मोदी के सबसे बड़े सहयोगी चंद्रबाबू नायडू ने एक किस्म की चेतावनी दे दी है केंद्र की मोदी सरकार को वो चेतावनी इसलिए भी खास बन जाती है क्योंकि चंद्रबाबू नायडू के समर्थन पर एनडीए का पूरा कुनबा तक का है और सरकार चल रही है लेकिन यह भी बात सही है के समर्थन के लिए ठीक ठाक कीमत मोदी सरकार चंद्रबाबू नायडू को दे रही है, अदा कर रही है और दोनों के बीच एक रिश्ता मजबूत है
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लेकिन चंद्रबाबू नायडू ने बावजूद इसके एक सख्त चेतावनी केंद्र की मोदी सरकार को दे ही डाली और इस बार की चेतावनी उन्होंने बहुत खास दी है वो चेतावनी 2027 की जनगणना और उसके बाद होने वाले परिसीमन से जुड़ी हुई हैं चंद्रबाबू नायडू ने द प्रिंट को दिए एक साक्षात्कार में साफतौर पर कहा या तो सीटें फ्रीज़ कर दे या आनुपातिक रूप से बढ़ा दे
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मन के विकल्पों पर अपनी टिप्पणी करते हुए चंद्रबाबू नायडू ये कहते हुए साफ करते हैं कि ऐसा ना हो कि जनगणना के बाद जो आंकड़े आए क्योंकि आपको पता है कि परिसीमन उसके बाद किया जाना है और परिसीमन से कई चीजें एक साथ जुड़ी हुई है। महिला आरक्षण विधेयक वो अभी परिसीमन के बाद जो आंकड़े आएँगे उन्हीं आंकड़ों पर आधारित होगा
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कितनी सीटें रिज़र्व होंगी महिलाओं के लिए कितनी पुरुषों के लिए उस परिसीमन का पूरा दारोमदार इस जनगणना से प्राप्त आंकड़े से मिलेगा इस जनगणना से प्राप्त आंकड़े के बाद महिला आरक्षण के साथ परिसीमन करके लोकसभा और राज्यसभा की सीटें बढ़ाया जाना है आपको पता होगा कि जब देश में कोरोना चल रहा था तो के वक्त में जब नई संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था और देश भर में नरेंद्र मोदी की सरकार का बहुत आलोचना हो रही थी कि एक समय लोग मर रहे हैं
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ऑक्सीजन के बिना अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं नहीं है और केंद्र की मोदी सरकार सेंट्रल विस्टा के काम को रोक नहीं रही है और वो काम बहुत तेजी से हुआ उसके बाद नई संसद बनी और इस समय मौजूदा वक्त में उसी नई संसद भवन में लोकसभा, राज्यसभा और सारी कार्यवाही चल रही है जिसके उद्घाटन में राष्ट्रपति पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया
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हालांकि आप लोग ये सारे सवाल भूल चूके होते है और इसका कोई बहुत असर आप पर नहीं पड़ता है आप इसी बात से खुश हो जाते है की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बना ही दिया लेकिन उनको इस संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाया गया सेम गोल को बीच में लाकर रखा गया सिम्बोल क्या है फिर कभी बात होगी, अगर आपकी दिलचस्पी होगी तो आप भी जरूरत पर विचार करेगा
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किस अंगुल किस का प्रतीक है लेकिन उस नई संसद दोनों तरफ पीछे ढेर सारी सीटें खाली मिलती है जब भी आप लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही देखेंगे तो पीछे जो सीटें खाली होती है वो सीटें इसी परिसीमन के बाद भरी जानी और इसी परिसीमन के बाद जो एक कयास लगाया जा रहा है सीटें बढ़कर कितनी हो जाएगी 2026 के डीलिमिटेशन के बाद यानी परिसीमन के बाद 800 लोकसभा सीटें होने का दावा है
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और लगभग 320 और 12 राज्यसभा की सीटें होंगी या नहीं लोकसभा और राज्यसभा दोनों को अगर मिला दें तो देश के कुल नए सांसद जो चुने जाएंगे वो 1132 के आसपास का कोई आंकड़ा है अभी जब परिसीमन होगा तो उसके वास्तविक आंकड़े आएँगे अभी तो ये वो आंकड़े हैं जो मीडिया में चर्चा में बने हुए हैं। सरकारी तौर पर जब परिसीमन होगा, जनगणना के आंकड़े आएँगे तब इसकी बात आएगी। इसका एक कयास लगाया जा रहा है
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कि लगभग 1132 सांसद लोकसभा और राज्यसभा दोनों मिलाकर परिसीमन में चुने जाएंगे बीते दिनों ऐसी बात को लेकर के दक्षिण भारत के राज्यों में खास नाराजगी देखने को मिली थी अगर आपको याद ना हो तो बता दें कि दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्य तमिलनाडु क्योंकि आंध्र प्रदेश पहले बड़ा हुआ करता था, अब वो दो हिस्सों में आंध्र प्रदेश जिसके मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की बात अभी हम करने ही वाले हैं और दूसरी तरफ तेलंगाना, कर्नाटक, इन राज्यों के अलावा जो सबसे खास राज्य है वो है तमिलनाडु तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बीते दिनों बहुत सख्त एतराज इस बात पर दर्ज किया था
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एमके स्टालिन ये कहते हुए नजर आए थे कि कहीं ऐसा ना हो की उत्तर भारत में जन संख्या ज्यादा है और जनसंख्या को आधार बनाकर जब परिसीमन किया जाए तो उत्तर भारत के राज्यों को इसका ज्यादा बेनिफिट दे दिया जाए और हमने विकास के तमाम पैमाने छुए हमने विकास के नए तरीके ईजाद किए
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दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण किया और इसके मुताबिक हमें सीटें कम हो जाएगी। मीडिया में उड़ती खबरों की अगर बात करें तो तमिलनाडु के पास आज के तारीख में 39 लोकसभा की सीटें हैं, जो बढ़करके 48 होंगी यानी केवल सात सीटों की
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वृद्धि होगी तेलंगाना के पास 17 सीटें हैं जो बढ़कर 25 हो जाएंगी यानी अगर आप गौर करें तो आठ सीटे तेलंगाना को बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं कयास ये भी लगाया जा रहा है कि कर्नाटक के पास 28 सीटें हैं जो बढ़कर 42 हो जाएंगी
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आंध्र प्रदेश के पास 25 सीटें हैं, जो बढ़कर 34 चंद्रबाबू नायडू अपने साक्षात्कार में द प्रिंट को ये बता रहे हैं कि कहीं ऐसा ना हो की जनसंख्या जब बढ़कर आये उत्तर भारत में तो अनुपात के लिहाज से उत्तर भारत में सीटें ज्यादा कर दे जैसे इसी अगर आंकड़े की बात मानी जो कि मीडिया में कितना सही है, कितना गलत है मैं इसका कोई दावा नहीं कर रहा हूँ
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लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया पर इस तरह के कई आंकड़े जब तक सरकार कोई आंकड़ा न दे दें तब तक इन आंकड़ों को हम वैध नहीं मान रहे हैं लेकिन ये कयास लगाया जा रहा है एक आकलन हो रहा है उत्तर प्रदेश का ही अगर उदाहरण ले ले तो उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा केवल उत्तर भारत नहीं, पूरे भारत में 80 लोकसभा सीट और ये आंकड़ा बता रहा है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सीटें बढ़कर के 121 हो जाएगी यानी कल्पना करिए सीधे 41 सीटें बढ़ जाएंगी बिहार की बात करें तो बिहार की 40 लोकसभा सीटें बढ़कर 61 हो जाएगी
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यानी ये जो कयास है ये जो अंदाजा है ये जो एक डर ऐसा दिख रहा है तो अभी आपने जब दक्षिण भारत के राज्यों की बात सुनी होगी तो तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना कर्नाटक इनके आंकड़ों में देखेंगे की प्रतिशत की तुलना में कम सीटें बढ़ाई जा रही है और उत्तर भारत में सीटों के बढ़ाने जी का अंदाजा ज्यादा है
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अभी कुछ भी पता नहीं है, लेकिन अगर ये हुआ तो ये कितना बड़ा पैदा करेगा हम के स्टालिन ने तो बहुत सख्त ऐतराज इस पर जताते हुए कहा था कि ये संघीय ढांचे पर एक तरह से हमला होगा इसी बात को चंद्रबाबू नायडू भी प्रकारांतर से कहते हुए सुनाई दे रहा है चंद्रबाबू नायडू ने अपने इंटरव्यू में दो विकल्प दिए हैं केंद्र सरकार को की अगर आप लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंख्या आधारित पुनर्निर्धारण की संभावना को कम करते है जो दक्षिण भारतीय राज्यों के लिए एक गंभीर मुद्दा है तो इसका नुकसान होगा
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उनका तर्क है कि जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्आवंटन लोकसभा में उनके प्रतिनिधित्व को कम कर देगा, जो उनके अनुसार उनकी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए उन्हें दंडित करने के बराबर कैसी आर्टिकल में आगे जिक्र मिलता है कि तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने आरोप लगाया है कि केंद्र की मोदी सरकार जीस तरह से जनगणना और उसके बाद परिसीमन कर रही है, उसमें एक भयावह साजिश है उन्होंने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण की अनदेखी करने वाले राज्यों को अतिरिक्त सीटों से पुरस्कृत किया जाएगा जिससे संघीय ढांचे में गड़बड़ी होगी
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चंद्रबाबू नायडू द प्रिंट को दिए अपने साक्षात्कार में कहते हैं कि दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या घटाई है लेकिन अगर परिसीमन होता है तो ये तो नाराजगी की बात होगी आप परसीमन कर सकते हैं लेकिन सीटों की संख्या में बदलाव ना करे या तो आप सारी सीटें फिक्स रखें या अनुपात फिक्स रखें मिसाल के तौर पर चंद्रबाबू नायडू कहना ये चाह रहे है की मान लीजिए अगर पूरे देश में 7.5% एक राज्य की हिस्सेदारी है तो जब बढ़ाई जाए सीटें तो बढ़ाने के बाद भी उनका प्रतिशत 7.5 ही होना चाहिए
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लेकिन इस बात का काउन्टर तर्क दूसरी तरफ ये भी दिया जा रहा है कि ये जो परिसीमन का पूरा मामला यह बहुत पेंचीदा है वहीं इसका एक दूसरा पक्ष ये भी है की आंकड़ों के मुताबिक अगर गौर करें तो उत्तर भारत और दक्षिण भारत का ढांचा सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक ढांचा एक जैसा कभी रहा ही नहीं। समुद्र तटीय क्षेत्र होने के साथ साथ उत्पादन के खास व्यावसायिक फसलों की वरीयता के चलते और अपनी अलग मिज़ाज और संस्कृति के चलते दक्षिण भारत तेजी से विकसित हुआ लेकिन आंकड़े एक और कहानी भी कहते हैं कि दक्षिण भारत की आबादी मिसाल के तौर पर केरल से ले के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक इन राज्यों की आबादी 1881 की जनगणना के बाद 1951 और 1971 तक ठीक ठाक तेजी से बढ़ती है और उसके तुलना में उत्तर भारत के राज्यों की आबादी इन सालों तक कम बढ़ती है और जब आगे मामला बढ़ता है 1971 के बाद के आंकड़े बताते हैं
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कि दक्षिण भारत के राज्यों। अपने जनसंख्या नियंत्रण समीक्षा का उच्च विकास और व्यावसायिक चीजों में ज्यादा निवेश करने के चलते संपन्नता के नए आयाम छुए और जनसंख्या को कुछ हद तक नियंत्रित किया और इसका ठीक उल्टा उत्तर भारत की तरफ दिखाई देता है। ये उत्तर भारत के राज्यों में 1960 70 के बाद। बहुत तेजी से जनसंख्या विस्तार और जनसंख्या विस्फोट जैसी चीजें देखने को मिलती है। वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी, पलायन जैसे तमाम मुददे उत्तर भारत के
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राज्यों में दिखाई देते हैं वो गोबर पट्टी की तरह दिखाई देते हैं अब कहीं ऐसा तो नहीं चंद्रबाबू नायडू इशारा कर रहे हैं कि जिंस गोबर पट्टी में किसी भी राज्य को गोबर पट्टी कहना कितना जायज है ये बात आपको सोचना होगा लेकिन इसी इन्हीं राज्यों में जहाँ शिक्षा का अभाव है, जहाँ बेरोजगारी सबसे ज्यादा है, जनसंख्या सबसे तेजी से बढ़ रही हो, वहाँ बीजेपी भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है और बीजेपी उन राज्यों में ज्यादा मजबूत है
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हाँ, पाखंड अंधविश्वास है और पाखंड में विश्वास वहाँ है जहाँ गरीबी जाता है, भुखमरी जाता है, अशिक्षा जाता है, बेरोजगारी ज्यादा है अब इस पर तो कोई आर्टिकल आपको मिलेगा नहीं, इसे तो अपनी समझदारी से समझना होगा
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आपको तो क्या ये उत्तर और दक्षिण के बीच परिसीमन में जो बंटवारा होगा अगर सोशल मीडिया में उड़ती खबरों को ही सही माना जाए वो केवल यूपी, बिहार को जोड़ दें तो 62 सीटें उत्तर भारत में पड़ जाएंगी और दक्षिण भारत के कई राज्यों को मिला दें तो भी 60 सीटें नहीं बढ़ेंगी इससे क्या लग रहा है कहीं दूसरा संकेत ये भी तो नहीं चंद्रबाबू नायडू नरेंद्र मोदी सरकार को करना चाह रहे है की आप उन राज्यों को निशाना बना रहे हैं
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जहाँ आपके मेजोरिटी के लोग जाता है इसलिए जनसंख्या में उस जनसंख्या का मताधिकार की वैल्यू आप बढ़ा रहे हैं और दक्षिण भारत के लोगों के वोट के अधिकार की वैल्यू को कम कर रहे हैं कितने लोग कितना वोट देकर किसको चुनेंगे और वहीं दूसरी तरफ कितने लोग कितना वोट देकर के किस को चुन रहे हैं
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अगर इन दोनों में एकरूपता नहीं है तो क्या ये बाबासाहब के संविधान के मुताबिक एक व्यक्ति एक वोट और एक मूल्य के न्याय को सही साबित करता है इस बात का विश्लेषण आगे और देखने को मिलेगा पता नहीं आज ये बातें आप कितनी समझ पा रहे है या नहीं समझ पा रहे हैं, लेकिन भारत में आने वाले दिनों में बहुत ही खास तरह के बदलाव और चुनौतियां देखने को मिल सकती उसका एक इशारा एमके स्टालिन चलिए आप कहेंगे कि एमके स्टालिन तो एनडीए के विरोधी खेमे में हैं, वो इंडिया ब्लॉक की तरफ से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार से यह आरोप लगाते हुए सवाल कर रहे हैं कि आप अगर जनसंख्या के मुताबिक जनगणना के बाद परिसीमन को इस रूप में बढ़ाते हैं कि उत्तर भारत के राज्यों में सीटों का अनुपात बहुत ज्यादा बढ़ जाए
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और दक्षिण भारत के राज्यों में सीटों का अनुपात उसकी तुलना में कम बढ़े तो यह संघीय ढांचे को ध्वस्त करेगा और भयावह साजिश की तरह। एमके स्टालिन की यह बात अगर विरोधी की बात कह करके टाल दी जाए तो चंद्रबाबू नायडू की चेतावनी पर नरेंद्र मोदी सरकार का क्या रुख होगा? देखना दिलचस्प होगा कि जनगणना के बाद होगा क्या
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लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी की एक तो 2026 के आसपास परिसीमन होना था, अब 2026 में भी कायदे से करना शुरू नहीं हो रही यानी जो जनगणना 21 में हो जानी थी 25 में डीलिमिटेशन के लिए प्रावधान किया गया था कि 1900 2025 के बाद होगा अब 2026 में अक्टूबर में पहाड़ी राज्यों में जनगणना शुरू हो रही है कायदे से पूरे भारत में जनगणना 1 मार्च 2027 से शुरू होगी आंकड़े कब आएँगे यानी तब तक 2029 का चुनाव तो अपने आप निपट चुका होगा
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यानी 2029 का चुनाव किस परिसीमन पर होगा और 2029 के चुनाव में क्या जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक हो चूके होंगे और क्या महिला आरक्षण लागू हो चुका होगा इस तीनों सवालों का जवाब है नहीं इनमें से एक भी काम अभी 2029 तक नहीं होने वाला यानी ऐसे सब्जबाग नरेंद्र मोदी सरकार ने दिखाया है जिसको अभी आगे के लिए टाला जा रहा लेकिन पूरे देश में इस बात की चर्चा है की नरेंद्र मोदी क्या अपने सहयोगियों तक को बख्शना नहीं चाहते
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क्या नरेंद्र मोदी उन बैसाखियों को भी हटा देना चाहते हैं और उसके बिना भी अपने मुताबिक अपने उसूलों पर अपनी बैसाखी से सरकार चलाना चाहते? ऐसे में चंद्रबाबू नायडू की है? चेतावनी कितनी भारी पड़ेगी और बीजेपी सरकार इस चेतावनी पर क्या अपनी नीतियां बदलने जाएगी
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क्या इस तरह के प्रावधान अभी बदलेंगे ये तो तब पता चलेगा जब जनगणना के बाद जाति, जनगणना और परिसीमन के सारे दस्तावेज नियम, कायदे, कानून और शर्तें पब्लिक डोमेन में आ जाएंगे लेकिन तब तक वो तो और नागरिक आपके लिए खबर इसलिए महत्वपूर्ण है कि देखिये जो अपने सहयोगियों के सामने भी मुश्किल पैदा करे उसका नाम है बीजेपी इस बात पर आपका क्या कहना है नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएगा
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