ऐसे रहा तो स्कूल बंद हो जायेंगे .गरीब बच्चे नहीं पढ़ पाएंगे

ऐसे रहा तो स्कूल बंद हो जायेंगे गरीब बच्चे नहीं पढ़ पाएंगे
ऐसे रहा तो स्कूल बंद हो जायेंगे गरीब बच्चे नहीं पढ़ पाएंगे
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सरकारे स्कूलों को बंद करने का फरमान सीधे नहीं देती है लेकिन क्लोज़र और मर्जर की पॉलिसी के तहत वो रास्ता खोल चुकी थी, जिसके तहत स्कूल परिसर यानी स्कूल कॉम्प्लेक्स की स्थापना होनी थी यानी किसी जिले में एक सबसे अच्छा स्कूल तो होगा लेकिन बाकी स्कूल जिनमें पहले फंड कम होगा शिक्षा का बजट कम होगा फिर मास्टर कम होंगे फिर मास्टरों पर काम का प्रेशर बढ़ेगा, फिर विद्यार्थी कम होंगे और फिर स्कूल बंद कर दिया जाएगा
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उसी के कुछ किलोमीटर के आसपास एक चमचमाता एयर कंडीशन प्राइवेट स्कूल खुलेगा, जिसमें चमचमाती बसे उस शहर के चारों ओर गलियों में घूमेंगी, बच्चों को चमचमाते ड्रेस पहना कर के उस प्राइवेट स्कूलों में ले जाएंगे जिसमें 6 दिन में छे तरह के ड्रेस होंगे उनकी किताबों का वजन कई गुना ज्यादा होगा हजारों रुपये मासिक फीस होगी और उस गांव के कस्बे के आस पास के सक्षम रूप से ताकतवर घरों के बच्चे चमचमाते हुए किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाएंगे, जिनकी आबादी 2 4 5 फीसदी से कम होंगी
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बाकी बच्चे मिड डे मील लेने के लिए अपने फटे हुए झोले में एक खाली ले करके सुखी रोटी की उम्मीद में किसी दूर के सरकारी स्कूल में जाने की कोशिश करेंगे जो स्कूल नहीं जा पाएंगे, वे बच्चे जो रिपोर्ट कहती है की ड्रॉपआउट रेश्यो लाखों बच्चों का बढ़ गया। वे किसी मजदूरी की तलाश में शहर की ओर चल पड़ेंगे राजेश जोशी ने कविता लिखी थी। बच्चे काम पर जा रहे हैं। राजेश जोशी की कविता सुनिएगा। कोहरे से ढंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं। सुबह सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं। हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है। ये भयानक है। इसे विवरण की तरह लिखा जाना लिखा जाना चाहिए। इसे सवाल की तरह। काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे? क्या अंतरिक्ष में गिर गयी है सारी गेंदें क्या दीमकों ने खा लिया हैं सारी रंग बिरंगी किताबों को क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं
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सारे खिलौने क्या किसी भूकंप में ढह गई है मत सारे मदरसे की इमारतें क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आंगन खाक हो गए हैं एक तो फिर बचाएगी क्या है इस दुनिया में कितना भयानक होता अगर ऐसा होता भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह की है सारी चीजें हस्बमामूल पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए बच्चे बहुत छोटे छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं और याद रखियेगा रोजगार पर नहीं, मजदूरी वाले काम पर जा रहे हैं। क्या आप वो तस्वीरें भूल गए जब दिल्ली की सड़कों पर खड़े होकर के वहाँ विद्यार्थियों के अभिभावक आंदोलन कर रहे थे कि लगभग 25 से 50 फीसदी फीस विद्यालयों ने बढ़ा दी है? दिल्ली पब्लिक स्कूल डीपीएस द्वारिका के अभिभावक स्कूल के गेट और शिक्षा निदेशालय डीओई के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए कह रहे थे कि उनकी वार्षिक शुल्क यानी 1 साल की फीस लगभग ₹1,40,000 हो गई है
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2020 से हर साल ट्यूशन फीस में आठ से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है दिल्ली एनसीआर के निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों के बाहर आंदोलन की एक श्रृंखला देखने को मिल रही थी देश भर के अभिभावक फिर इसमें जुड़ते चले गए। फिर एक रिपोर्ट तैयार की गई लोकल सर्कल सर्वेक्षण जिसके मुताबिक भारत भर के 301 जिलों के अभिभावकों के। 12,000 से ज्यादा प्रतिक्रिया इसमें शामिल हुईं। 44 अभिभावकों का कहना है कि पिछले तीन सालों में स्कूल की फीस 50 से 80 फीसदी या उससे भी ज्यादा बढ़ा दी गई है
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उच्च कक्षाओं में पढ़ने वाले परिवार के बच्चों की फीस और ज्यादा बढ़ा दी गई है बिज़नेस स्टैन्डर्ड की इस रिपोर्ट में आगे कायदे यह बताया गया है की कई अभिभावकों ने इस बात की चिंता ज़ाहिर की कि उनकी आमदनी उतनी नहीं बढ़ी जितना फीस बढ़ गई है इंडियन एक्सप्रेस में किस अप्रैल 2025 को सौफिया मैथ्यू ने एक रिपोर्ट छापी जिसका शीर्ष के बनाया कि हमारा वेतन उस गति से नहीं चल सकता फीस में भारी वृद्धि के कारण अभिभावक बनाम दिल्ली की स्कूल हुए दिल्ली के बसंत बिहार में रहने वाली 42 वर्षीय माँ अपने दो बच्चों की फीस हर महीने ₹34,000 खर्च करती है
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यानी उनके एक महीने के वेतन का लगभग। आधा हिस्सा दो बच्चों की फीस में जाता है। वो बताती हैं कि अप्रैल में जब नया स्कूल वर्ष शुरू हुआ तो महिला स्कूल की फीस बढ़ोतरी देखकर हैरान हो गई। जिसमें पता चला कि पिछले साल में इस साल की तुलना में 45% फीस बढ़ा दी गई। उन्होंने आगे बताया कि जब बच्चा न वीं में ऐडमिशन लेता है तो ये एक लड़के न विधि होती यानी वे बारहवीं की कक्षा तक उसी स्कूल में पढ़ते रहेंगे। उस स्तर पर स्कूल बदलना बहुत मुश्किल हो जाता है। ग्यारहवीं और बारहवीं के साइंस स्ट्रीम के एक बच्चे की कुल मासिक फीस तो आज की तारीख में ₹13,728 बताई गई है। जो साल 2023 की तुलना में। लगभग 52 फीसदी अधिक है। 1 साल में दिल्ली में ग्यारहवीं और बारहवीं में पढ़ने वाले
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बच्चों की फीस 52 फीसदी बढ़ा दी गई मुबारक हो इस पर आप को युद्ध नहीं लड़ना है एक चाट बनाकर दिल्ली में रहने वाले एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि लगभग 34,030 एक परिवार दो बच्चों की फीस देता है लगभग 15 से 20,000 वो अपने घर की ईएमआइ देता है और 10 से 15,000 वो खाने पीने का खर्च देता है यानी अगर आपको दिल्ली में दो बच्चों को पढ़ाना है, एक ठीक ठाक जगह पर रहना है। तो एक महीने में 1,00,000 से ज्यादा की आमदनी होनी चाहिए
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अब ज़रा सोच कर बताएगा कि भारत जैसे देश में कितने परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी ₹1,00,000 से ऊपर है मगर अफसोस के आपको इस बात की फिक्र नहीं है मगर गनीमत रखिए की आप दिल्ली में है जहाँ जब गर्मियों की छुट्टी होगी तो बच्चों को एक्स्ट्रा करिकुलर ऐक्टिविटीज की दिशा में आगे ले जाया जाएगा उनकी स्विमिंग क्लासेस चलेंगी उनकी गेमिंग क्लासेस चलेंगें, उनके नए नए स्किल डेवलपमेंट के प्रोग्राम चलेंगें शुक्र मनाइए कि आपका बच्चा उत्तर प्रदेश बनाइये क्योंकि उत्तर प्रदेश की सरकार अब गर्मी की छुट्टियों का इस्तेमाल करते हुए वहाँ वैदिक शिक्षा और भारतीय ज्ञान परंपरा की बोध देने की क्लासेस चलाने जा रही है
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उत्तर प्रदेश में ग्रीष्मकालीन कार्यशाला की अभिरुचि कार्यशाला में रामायण पढ़ाया जाएगा बच्चों को प्राचीन ग्रंथों की एक खास धार्मिक व्याख्या कराई जाएगी श्रीराम के आदर्शों से सीखेंगे बच्चे रामायण अभिरुचि और वेद कार्यशाला शुरू की जा रही है, जिसमें उत्तर प्रदेश के बच्चे ग्रीष्मकाल में रामायण अब रुचि कार्यशाला में जा रहे होंगे जैसे मैं उत्तर प्रदेश के बच्चे प्राचीन ग्रंथों की एक खास धार्मिक व्याख्या में उलझाए जा रहे होंगे
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जिससे मैं उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों के बच्चे भक्ति साहित्य, आदर्श पात्रो, धार्मिक अनुष्ठान में जा रहे होंगे और कार्यशाला के जरिए एक धर्म विशेष की शिक्षा संस्कृति के नाम पर ले रहे होंगे। उसी समय दिल्ली के बच्चे क्या कर रहे होंगे? बच्चों से तुलना ही नहीं करना चाहता जो शोध करने पर पता चलता है कि चीन अपने प्राइमरी एजुकेशन में ही एआइ इन्टेलिजेन्स कोटिंग मैथमैटिक्स रोबॉटिक्स पर फोकस कर रहा है
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स्पेस टेक्नोलॉजी ग्रीन एनर्जी बायोटेक्नोलॉजी में बच्चों की भागीदारी की एक्स्ट्रा क्लास चलाई जाती है। चीन में बच्चे ना राष्ट्र निर्माण, आर्थिक विकास और नेतृत्व की क्लासेज ले रहे होते हैं और भारत में धार्मिक संस्कार और एक धर्म के वे पुराने ग्रंथ पढ़ रहे होते हैं जिसमें लिखा होगा कि विज्ञान की बजाय। धार्मिक कहानियों के मुताबिक पृथ्वी कैसे बनी? पृथ्वी किस पर टिकीं हैं, पृथ्वी कैसे काम करती है, मनुष्य कैसे पैदा होता है, मनुष्य कैसे मर जाएगा,
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मनुष्य को क्या करना चाहिए, हवन का क्या मुख्य उद्देश्य है और आदर्श व्यक्ति कौन होता है? भारतीय ज्ञान मीमांसा का एक धर्म की व्याख्या उत्तर प्रदेश के बच्चे पढ़ेंगे बधाई हो उत्तर प्रदेश में नया तस्वीर विद्यालयों की आपके सामने ये वही उत्तर प्रदेश है जिसने सबसे पहले अपने पाठ्यक्रमों से मुगल काल को हटाया था बिज़नेस स्टैंडर्ड की 27 अप्रैल 2025 की खबर के मुताबिक नई एनसीआरटी पाठ्यपुस्तकों में मुगलों और दिल्ली सल्तनत के पाठ को हटाया गया है
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और महाकुंभ को जोड़ा जा रहा है इस सप्ताह जारी की गई नई पाठ्य पुस्तकें नई राष्ट्रीय शिक्षा, नीती, एनईपी और स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा के रूपरेखा एनसीएफ 2023 के अनुसार तैयार की गई है। बधाई हो आपका सेल बस बदला जा चुका है। सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक एक्स्प्लोर इन सोसाइटी इंडिया ऐंड बियॉन्ड में प्राचीन भारतीय राजवंश वो जैसे मगध, मौर्य, शुंग और सप्ताहांत के अध्याय तो जोड़े गए हैं जिनका ध्यान भारतीय लोकाचार पर और वही पुस्तक के एक अन्य नए संस्करण में भूमि कैसे पवित्र बनती है
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नामक एक अध्याय जोड़ा गया जिसमें इस्लाम, ईसाई, यहूदी, पारसी, हिंदू, बौद्ध और सिख जैसे धर्मों लिए भारत और विदेश में पवित्र माने जाने वाले स्थानों और 30 के केंद्र चैपटर जोड़े गए एक पवित्र भूगोल नामक चैपटर में 12 ज्योतिर्लिंगों चारधाम यात्रा शक्तिपीठ के नेटवर्क के साथ साथ संगम पर्वत और जंगलों का विवरण दिया गया है जो पूजनीय है ये एनसीईआरटी की किताब में वो पूजनीय स्थल बच्चों को बताए जाएंगे ताकि जैसे ही वह घर जाए वो घर वालों को कहे कि उनका विकास अगर करना है तो इन ज्योतिर्लिंगों का इन चारों धामों का नौका यात्रा तो करवाई है
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तो फीस देने के साथ साथ आपका यह भी खर्च बढ़ने वाला है और अगर आपके घर में पहले से ही इस बात का माहौल है तो स्कूल से बच्चा जब छुट्टी पर आए, पवित्र भूगोल की वो किताब पढ़ लें, उसके बाद आप उसे चार धाम यात्रा पर ले जाये। महाकुंभ शामिल किया गया है, लेकिन महाकुंभ में हुई भगदड़ शामिल नहीं। इस पाठ्यपुस्तक में जाति और वर्ण व्यवस्था की शुरुआत अच्छी
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