वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त सरकार को राहत नहीं

वक्फ कानून पर टली सुनवाई, CJI ने खुद को किया अलग, Supreme Court में क्या-क्या हुआ
वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त सरकार को राहत नहीं
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आज सुप्रीम कोर्ट में वक़्फ़ बोर्ड पर सुनवाई चल रही थी तो वक़्फ़ कानून के मामलों में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत की उम्मीद थी, लेकिन राहत नहीं मिली व कानून पर याचिकाकर्ताओं को जो इस वक्त कानून का विरोध कर रहे थे उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भरोसा था कि सुप्रीम कोर्ट अंतरिम आदेश दे देगा चीफ जस्टिस खन्ना जाते जाते एक बड़ा फैसला करके जाएंगे, लेकिन जस्टिस खन्ना भी बड़ा फैसला नहीं किया
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ये एक तरह से बड़ा फैसला ये किया कि पिछली बार जो कहा था उसको बरकरार रखा। बड़ा फैसला इस रूप में हुआ जो पिछली बार भारत सरकार ने अपनी तरफ से तीन एफिडेविट दिए थे कि एक वक्त बी यू सर वाले मुददे को छेड़ा नहीं जाएगा
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यानी जिनके पास कागज नहीं है उनको कागज दिखाने के लिए नहीं कहा जाएगा। दूसरा वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल में किसी गैर मुसलमान को सदस्य नहीं बनाया जाएगा। और तीसरा कलेक्टर अभी जो भूमिका निभा रहे हैं वहीं भूमिका निभाते रहेंगे। उनकी भूमिका वक़्फ़ मामलों में बढ़ाया नहीं जायेगा
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तो ये तीनों शर्तें लागू रहने वाली है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि वक्फ कानून अब ठंडे बस्ते में चला गया है। लंबे समय के लिए ठंडे बस्ते में चला गया है। हालांकि चीफ जस्टिस खन्ना ने कहा की 13 मई को रिटायर हो रहा हूँ मेरे रहते रहते मामले का फैसला नहीं आ सकता तो जस्टिस अगले BR जस्टिस के पास जा सकता है
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उनकी बेंच में ये मामला आए इस मामले की जल्द सुनवाई होनी चाहिए। इस पर सहमति व्यक्त हुई कि अगले इसी महीने की 15 तारीख को जस्टिस गवई की बेंच में ये मामला लाया जाएगा।
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स्वाभाविक है की जस्टिस खन्ना तो चाहते हैं कि अगले 3 4,5 सुनवाइयों में मामला निपट जाए। यानी दो तीन महीने से ज्यादा समय नहीं लगे, लेकिन बीआर गवई क्या करेंगे क्या करेंगे किस ढंग से यह कार्रवाई चलेगी, सरकार के हथकंडे क्या रहेंगे ये सरकार अपना क्या कानूनी दांव पेंच लेकर आएगी
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इन सब चीजों पर मामला निर्भर करता है लेकिन सरकार को लेकिन सरकार को सुप्रीम से हताशा हुई कि सरकार ने ये 1332 पन्ने का एक हलफनामा दिया था। उस हलफनामा में सरकार ने तीन चार बातें कहीं थी एक तो उनका यह कहना था कि ये बड़ा कानून है और व्यापक कानून है। संविधान को दृष्टि में लेकर बनाया गया है। धर्मनिरपेक्षता का तानाबाना इससे बिखरता नहीं है
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जो लिहाजा इस कानून को जारी रखा जाए और ये जो याचिकाएं इसके खिलाफ़ लगाई गई है ये सारी याचिकाएं एक दर्जे में एक सिरे से सारी की सारी याचिकाएं खारिज कर दी जाए
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लेकिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया में जो तीन न्यायाधीशों की बेंच थी, जिसमें जस्टिस संजय थे और जस्टिस विस्वनाथन थे, उन्होंने इस मांग को पूरी तरह से सिरे से नामंजूर कर दिया

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याचिकाकर्ता ये चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट कुल मिलाकर श्रेय दे दे अंतरिम आदेश पारित कर दें लेकिन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने इससे भी इनकार कर दिया लेकिन जो अंतरिम आदेश पिछली बार इंडाइरेक्ट रूप में था कि भारत सरकार ने खुद कहा उस पर वो बैकफुट पर आते हैं या उन पर कोई अमल नहीं होगी
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कोई कार्रवाई नहीं होगी। और अगर इन तीन कानूनों कानून के जो तीन महत्वपूर्ण पहलू है, एक वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल से जुड़ा हुआ है, एक कलेक्टर की भूमिका में हैं की कलेक्टर तो भारत सरकार का नुमाइंदा है राज्य सरकार का नुमाइंदा है। उसी की अदालत में मामला जाएगा
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कि वक्फ बोर्ड ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है और वहीं कलेक्टर साहब आदेश पास करेंगे। मेरे हक में मैं जानता था कि क्या मेरा फैसला होगा
ये वाला जो कब तक जारी रहेंगे जब तक कि सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला वक्फ कानून के लेकर नहीं दे देता अंतिम फैसला देने में महीनों लग सकते हैं। तो तब तक के लिए मामला एक तरह से ठंडे बस्ते में चला गया है तो बीजेपी क्या सड़क पर इसको कैसे कैश करने की कोशिश करेगी या वहाँ भी वो मुँह की खाई है उसमें बीजेपी ने या इंडिया गठबंधन इसको सड़क पर कैश करने की कोशिश कैसे करेगा चुनाव में इसे कैसे वोटरों को लुभाने की मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने की कोशिश करेगी
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ये देखना भी दिलचस्प है। कुछ लोग कह रहे हैं कि चूँकि अभी सुनवाई चलेगी। क्योंकि मामला लंबा खिंचेगा तो हर बार जब सुनवाई होगी, मामला होगा तब तक नीतीश कुमार भी चर्चा में आएँगे
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उनकी मुस्लिम राजनीति भी चर्चा में आएगी चंद्रबाबू नायडू की राजनीति मुस्लिम राजनीति भी चर्चा में आएगी चिराग पासवान के बयान भी चर्चा में आएँगे और तब तक मुस्लिम और ज्यादा पोलराइज्ड होगा इसका सबसे बड़ा असर बिहार विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है वहाँ पर मुसलमान का क्या रिएक्शन रहता है पिछली बार तो ओवैसी के तीन या चार विधायको को वहाँ के मुसलमानों ने जिता दिया था। उनमें से एक को छोड़कर बाकी सब आरजेडी में लालू प्रसाद यादव की पार्टी में शामिल हो गए थे
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