कर्मचारियों के पास नहीं है प्रमोशन का अधिकार

कर्मचारियों के पास नहीं है प्रमोशन का अधिकार
कर्मचारियों के पास नहीं है प्रमोशन का अधिकार
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क्या किसी कर्मचारी का प्रमोशन रोका जा सकता है अगर वो एक तरीके से उस चीज़ के लिए डिसक्वालिफाइड नहीं है तो क्या उसका प्रमोशन हम रोक सकते हैं मामला है ये सारा हम पढ़ेंगे साइकल के माध्यम से देखिये क्या लिखा हुआ है कर्मचारी के पास नहीं प्रमोशन का अधिकार अब वो कर्मचारी के पास है,प्रमोशन का अधिकार नहीं है। इसका मतलब यह है यह फंडा मेन्टल राइट तो नहीं है कि आपको कानूनी अधिकार दिया गया है कि नहीं आपको प्रमोशन मिलेगा ही मिलेगा वो डिपेंड करता है कि आप उस लायक है या नहीं है, लेकिन यहाँ पर क्या है सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कुछ चीजों पे बदलाव किया है
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इसके पहले भी मामले आ चूके हैं लेकिन यहाँ पर कुछ बहुत क्लैरिटी के साथ बोला गया। सुप्रीम कोर्ट ने बोला है की अगर कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं है तो आप उसको जाँच करिए कि आप उसका प्रमोशन करना चाहते हैं कई बार होता है की किसी मान लीजिये किसी पुलिसकर्मी ने कुछ ऐसा काम कर दिया था जिसकी वजह से उसके खिलाफ़ जो है जांच वगैरह चल रही थी लेकिन उसको बाद निर्दोष करार दिया गया और जो है वो मामला वहीं पर खत्म हो गया तो क्या ऐसा है की मतलब किसी व्यक्ति ने पिछले दो 3 साल 4 साल पहले कोई चीज़ जैसे की हो उसके आधार पर आप उसका प्रमोशन रोक दें इन सभी पहलुओं को यहाँ पर इन्क्लूड करके सुप्रीम कोर्ट ने फाइनल फैसला सुनाया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नती से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया है कि किसी कर्मचारी को पदोन्नती का कानूनी अधिकार तो नहीं होता है लेकिन यदि वह योग्य है और अयोग्य घोषित नहीं हुआ है ठीक है, देखो योग्य होना और अयोग्य घोषित हो जाना दोनों चीजें अलग हो जाती है कि मैं तो योग्य हूँ पार्टिसिपेट करूँगा। अगर कोई अयोग्य घोषित हो जाएगा तो पार्टिसिपेट करेगा ही नहीं तो उसके नाम का विचार उसके नाम पर विचार करना आवश्यक है कि इस को प्रमोशन या पदोन्नती मिलनी चाहिए या नहीं मिलनी चाहिए।
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मुद्दा यही था, अब बात करते हैं यहाँ पर देखो। याचिकाकर्ता तमिलनाडु का व्यक्ति है। खासकर पुलिस का सिपाही है। उसने मद्रास हाइकोर्ट में आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी पदोन्नती की मांग को खारिज कर दिया गया था। मांग को खारिज करने का अधिकार जैसे यही था कि उसके खिलाफ़ कोई कार्यवाही चली थी। सालों पहले लेकिन वो खत्म हो चुकी थी। तो आप किसी व्यक्ति ने पास्ट में कोई गलती कर दी है, उसके आधार पर आप उसका फ्यूचर डिस्टर्ब नहीं कर सकते हो, यही यहाँ पर जो है तर्क दिया गया है। अब देखो सुप्रीम कोर्ट ने क्या पाया? उसके खिलाफ़ विभागीय कार्रवाई पूर्व में समाप्त हो गई थी। डिपार्टमेंटल जो है, कार्रवाई वगैरह होती रहती है। अगर आप जो है ठीक से काम नहीं करते तो वही चल रही थी, लेकिन वह पहले ही समाप्त हो चुकी थी। इसके बावजूद भी 2019 में पदोन्नती सूची से बाहर रखा गया था। वो अयोग्य नहीं था फिर भी उसके नाम पर विचार नहीं किया गया क्योंकि वहाँ के लोगों का मानना था कि उसके खिलाफ़ विभागीय कार्रवाई हुई है।
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इसका मतलब जो अगर आप एक बार गलती कर दें तो क्या आपको फ्यूचर में आगे बढ़ने का जो है यहाँ पर अधिकार नहीं है? इसी बात पर विचार किया जा रहा था। कोर्ट का निष्कर्ष यहाँ पर ये निकला कि यह निर्णय अन्यायपूर्ण था क्योंकि उसे पदोन्नती के लिए विचार किया जाना चाहिए था। जब वह अयोग्य नहीं था, कैपेबल था उसकी सारी जो भी कार्रवाई वगैरह है वो पूरे हो चुकी थी।
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तो इसी आधार पर जो है ये फैसला दिया, लेकिन आपको यह याद रखना है कि पदोन्न्ति एक अधिकार नहीं है, यह फंडामेंटल राइट नहीं है, आप इसके लिए जो है कोर्ट नहीं जा सकते हो। हाँ, लेकिन अगर आपके साथ जो है, भेदभाव हुआ है, आप अपने दूसरे अधिकार के लिए की मेरे साथ भेदभाव हुआ है। इसे जॉब से संबंधित किसी भी चीज़ में तो आप उस जो है आर्टिकल के तहत जो है
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ये जो है मेरा पद जो हैं लगातार बढ़ता रहे। कौन एक ही पद पर रहकर काम करना चाहेगा प्रशासनिक निष्पक्षता की बात करेगा तो सरकार या विभाग द्वारा कर्मचारी के साथ पक्षपातपूर्ण यहाँ पर जो है व्यवहार, सेवा नियमों और जो है संविधान के अनुच्छेद 14 में अगर किया जाता है तो क्या किया जा रहा है
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समानता के अधिकार जो अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, आप बात करते हैं सेवा का अधिकार बनाम अवसर का अधिकार। सेवा का अधिकार और अवसर के अधिकार की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ पर बोला है कि पदोन्न्ति अधिकार तो नहीं है, ठीक है, लेकिन बल्कि विचार का अवसर है कि विचार करके किसी व्यक्ति को हम आगे बढ़ाना चाहिएयेvisit our news website .https://grexnewshindi.com/
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