गोधरा कांड पर गुजरात हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

गोधरा कांड पर गुजरात हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
गोधरा कांड पर गुजरात हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
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गुजरात गोधरा ट्रेन अग्निकांड को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने लापरवाही और ड्यूटी से भागने की कीमत फिर से उजागर कर दी है
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हाईकोर्ट ने साफ कहा अगर ड्यूटी पर तैनात नौ रेलवे कॉन्स्टेबल साबरमती एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे होते तो ये दर्दनाक हादसा टल सकता था कोर्ट ने इन सभी कॉन्स्टेबलों की बर्खास्तगी को सही ठहराया और उनकी याचिकाएं खारिज कर दी है
24 अप्रैल को सुनाए गए 110 पन्नों के फैसले में जस्टिस वैशाली डी नानावती ने साफ कहा, ये पुलिसकर्मी A कैटगरी ट्रेन साबरमती एक्सप्रेस में तैनात थे, जिसमें घटनाओं की आशंका पहले से ज्यादा होती है इनकी ड्यूटी थी कि वे पूरी ट्रेन यात्रा के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करे, लेकिन इन लोगों ने ड्यूटी की एंट्री तो साबरमती एक्सप्रेस के नाम पर की पर चुपचाप दूसरी ट्रेन शांति एक्सप्रेस से यात्रा कर ली
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कोर्ट ने कहा अगर याचिकाकर्ता साबरमती एक्सप्रेस से यात्रा कर रहे होते तो गोधरा में जो हुआ वो टल सकता था ये गंभीर लापरवाही और कर्तव्य की अनदेखी थी और आरोप सिद्ध हो चूके हैं इन नौ पुलिसकर्मियों के नाम है गुलाब सिंह झाला, खुमान सिंह राठौड़ नाथाभाई धाबी, विनोद भाई बीजलभाई, जबीर हुसैन शेख रसीद। बाई परमार कुसूर भाई परमार किशोर भाई पत्नी और पुनाभाई बारियां ये सभी राजकोट भोपाल एक्सप्रेस के दाहोद पहुंचे थे और वहाँ से साबरमती एक्सप्रेस में ड्यूटी पर लौटना था, लेकिन इन्होंने साबरमती की जगह सुबह 5 :21 पर छूटने वाली शांति एक्सप्रेस से यात्रा की, जबकि साबरमती सिर्फ 6 घंटे लेट थी
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कोर्ट ने रिकॉर्ड के हवाले से कहा कि जब साबरमती एक्सप्रेस गोधरा पहुंची अब S 6 कोच पूरी तरह असुरक्षित था कोई भी पुलिसकर्मी उस कोच में मौजूद नहीं था ठीक उसी कोच को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था, जिसमें 58 लोग, महिलाएं और बच्चे शामिल जिंदा जल गए सुनवाई के दौरान पुलिसकर्मियों ने तर्क दिया कि अगर वो साबरमती एक्सप्रेस में होते तो शहीद हो जाते कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया और कहा पुलिस बल में रहकर इस तरह की सोच लज्जा जनक है और इसे अनुशासन अधिकारी ने सही ढंग से खारिज किया
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कोर्ट ने जांच प्रक्रिया को भी पूरी तरह निष्पक्ष बताया याचिकाकर्ताओं ने जांच अधिकारी पर पक्षपात का आरोप लगाया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि जब जांच चल रही थी तब कोई आपत्ति नहीं की गई बाद में जाकर ये बहाना बनाया गया सबसे चौंकाने वाली बात ये रही की दाहोद रेलवे स्टेशन के रजिस्टर में उन्होंने साबरमती एक्सप्रेस से यात्रा करने की छोटी एंट्री की। जबकि सच्चाई ये थी की ये सभी शांति एक्सप्रेस में सवार थे। अहमदाबाद पहुँचकर उन्होंने शांति एक्सप्रेस की एंट्री की पर कोई कारण नहीं बताया की ड्यूटी वाली ट्रेन क्यों छोड़ी
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घटना 27 फरवरी 2002 की सुबह 7:35 पर हुई। जब गोधरा स्टेशन पर ट्रेन के S 6 डिब्बे में पत्थरबाजी और आगजनी हुई था, और लोगों की मौत हो गई। अगर ये कॉन्स्टेबल मौजूद होते तो वो गार्ड या ड्राइवर से वॉकी टॉकी के जरिये मदद की मांग कर सकते थे शायद हमलावरो को भी पकड़ लिया जाता और जान माल का इतना बड़ा नुकसान ना होता कोर्ट ने कहा विभागीय जांच नियमों के तहत हुई अनुच्छेद 311 दो का पालन हुआ और सबूतों के आधार पर बर्खास्तगी का आदेश दिया गया इसमें किसी तरह की मनमानी या अन्याय नहीं दिखता गुजरात हाईकोर्ट का ये फैसला न सिर्फ जिम्मेदारी निभाने की अहमियत बताता है बल्कि ये भी साफ करता है झूठ बोला
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