Caste Census. जाति जनगणना से कतरा रही मोदी सरकार अचानक राज़ी कैसे हो गई

अचानक मोदी सरकार ने जाति जनगणना पर अपना रुख क्यों बदला
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देश की अगली जनगणना में जाति की भी जनगणना गिनती करेग बुधवार को केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राजनीतिक मामलों पर कैबिनेट कमिटी की बैठक में लिए गए सरकार के इस फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि जातियों की गिनती जनगणना के साथ की जाएगी सवाल ये है की अब तक जातिगत जनगणना से कतरा रही मोदी सरकार इसके लिए राजी क्यों हो गई कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल समेत कई विपक्षी दल लगातार देश में जाति जनगणना की मांग करते रहे सरकार के फैसले के बाद राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा, विपक्षी दलों की मांग के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने जातीय जनगणना से इनकार कर दिया था
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लेकिन सरकार को अब हमारी बात माननी पड़ी है। जितनी आबादी है, उतनी भागीदारी होनी चाहिए अब हमारी अगली लड़ाई यहीं होगी जातिगत जनगणना कराने की केंद्र सरकार के फैसले के ऐलान के बाद कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसका श्रेय विपक्षी दलों को दिया। उन्होंने कहा, हमने संसद में कहा था कि हम जातिगत जनगणना करवाके ही मानेंगे साथ ही आरक्षण में 50 फीसदी सीमा की दीवार को भी तोड़ देंगे पहले तो नरेंद्र मोदी कहती थी की सिर्फ चार जातियां हैं, लेकिन अचानक से उन्होंने जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर दी हम सरकार के इस फैसले का पूरा समर्थन करते हैं लेकिन सरकार को इसकी टाइमलाइन बतानी होगी ये जाति का जनगणना का काम कब तक पूरा होगा इस बीच राजनीतिक हलकों में ये सवाल पूछा जा रहा है कि मोदी सरकार ने जाति जनगणना से इनकार कर दिया था, उसके सामने ऐसी क्या मजबूरी आ गई की वो जनगणना में जातियों की गिनती कराने के लिए राजी हो गई

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इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर ने कहा, मोदी सरकार ने जब जाति जनगणना से इनकार किया तो महागठबंधन ने इसे पूरे देश में मुद्दा बना दिया इस बीच बिहार और कर्नाटक ने अपने अपने तरीके से जो जाती सर्वे कराया और उससे पता चल पाया कि पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की कितनी आबादी है और उस हिसाब से राजनीति में उनकी कितने हिस्सेदारी बन सकती है अब मजबूरी में मोदी सरकार को जाति जनगणना कराने का फैसला लेना पड़ा है क्या बिहार में चुनावी लाभ लेना है मकसद माना जाता है
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कि देश की आबादी में 52 फीसदी लोग पिछड़ी और अतिपिछड़ी जाति के हे ओबीसी समुदाय के नेताओं का मानना है किस हिसाब से उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी काफी कम है विश्लेषकों का कहना है कि राजनीतिक दल इन समुदायों का समर्थन हासिल करने के लिए जाति जनगणना का समर्थन कर रहे हैं
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बीबीसी के सवाल के जवाब में वरीष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरद गुप्ता ने कहा बीजेपी इसके खिलाफ़ थी उसने जातिगत जनगणना को देश को बांटने की कोशिश करने वाला बताया था लेकिन एनडीए में शामिल बीजेपी की ज्यादातर सहयोगी पार्टियां इसके पक्ष में हैं बिहार में अब बीजेपी की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड और आरजेडी के साथ रहते साल 2023 में जाति सर्वे हो चुका है
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कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने भी सर्वे करवाया है शरद गुप्ता का मानना है कि जातिगत जनगणना के आंकड़े 2026 या 2027 के अंत में आएँगे और तब तक बिहार और यूपी के चुनाव हो चूके होंगे इसलिए इसका चुनावी लाभ लेने की बात सही नहीं है जाति जनगणना को लेकर मोदी सरकार के रुख में ये बदलाव क्यों
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जब वरीष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अदिति फडनीस से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा दरअसल मोदी सरकार के अंदर ये बदलाव जातीय जनगणना को लेकर आरएसएस का नजरिया सामने आने के बाद हुआ है 2024 सितंबर में आरएसएस की एक बैठक के बाद कहा गया कि जाति जनगणना को लेकर उसे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसका राजनीतिक फायदा नहीं लिया जाना चाहिए
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हालांकि निश्चित तौर पर राजनीतिक दल इसका फायदा उठाना चाहते हैं आरएसएस का बयान ऐसे समय में आया था जब विपक्षी इंडिया गठबंधन जाति आधारित जनगणना को ज़ोर शोर से मुद्दा बनाए हुए था आजादी के बाद जातीय जनगणना क्यों नहीं हुई
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भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना करने की शुरूआत साल 1872 में की गई थी। आजादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल। 1951 में पहली बार जनगणना की तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया। तब से लेकर भारत सरकार ने एक नीतिगत फैसले के तहत जातिगत जनगणना से परहेज किया
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