योगी जी अपनी कुर्सी बचाने के लिए दिल्ली पहुँच गए है

योगी आदित्यनाथ को देना पड़ेगा इस्तीफा जातीय जनगणना बना मुसीबत
योगी आदित्यनाथ अपनी कुर्सी बचाने के लिए दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं और इधर केशव प्रसाद मौर्य ने बड़ा खेल कर दिया है सियासी मैदान में कोई भी किसी का सगा नहीं होता मौका मिलते ही नेता अपनी गोटियां सेट करने में लग जाते हैं और कुर्सी किसे नहीं चाहिए असली लड़ाई तो कुर्सी की ही है। केशव प्रसाद मौर्य को ही ले लीजिये 2017 से मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए तड़प रहे हैं उन्हें लगता है कि 2027 में उनका वनवास खत्म हो जाएगा
योगी जो उनकी राह के सबसे बड़े रोड़े बने हुए हैं लगता है कि इस बार कुर्सी से उतरने वाले ऐसे में केशव पोस्टर के जरिए संदेश देने में लग गए उनकी पोस्टर वाली कहानी क्या है उस पर बात करेंगे लेकिन उससे पहले अपनी डगमगाती कश्ती को योगी कैसे संभालने की कोशिश कर रहे हैं उसको समझने की कोशिश करते हैं
दरअसल, इसी महीने की 21 तारीख को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से बिना कार्यक्रम के मुलाकात के बाद योगी आदित्यनाथ दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे तो सियासी गलियारों में सुगबुगाहट शुरू हो गई सुगबुगाहट कैसी की कही कुर्सी जाने वाली तो नहीं है मुलाकात भी उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से की है इस वक्त उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई भी आपात स्थिति नहीं बनी है की योगी आदित्यनाथ को राजनाथ सिंह से मुलाकात करनी पड़े स्पेशल ली फिर वजह क्या है अपने आप में ये सवाल है सियासी गलियारों में चर्चा है
कि क्यों की राजनाथ सिंह बीजेपी के उस गुट से आते हैं जो दिखावे के लिए भले ही मोदी शाह का गुणगान करता हो पर नीतियों से भारी मनभेद रखता है। ऐसे में योगी की मोदी शाह से खटपट की खबरों के बीच में राजनाथ सिंह से मुस्कुराते हुए मुलाकात की। ये तस्वीर अपने आप में बहुत कुछ कहानी बयां करती हैं। कहा जा रहा है की योगी आदित्यनाथ अपने लिए फील्डिंग सेट करने के लिए दिल्ली पहुंचे हैं और राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। शायद यही वजह है कि पहले सीएम योगी आदित्यनाथ राजनाथ सिंह से मुलाकात करते हैं और फिर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के घर भी पहुंचते हैं क्योंकि धनखड़ को मोदी शाह का करीबी माना जाता है
शायद हिलती हुई कुर्सी को बचाने के लिए यह मुलाकात अहम रहे। यह मुलाकात ऐसे वक्त में हो रही है जब आरएसएस ने योगी आदित्यनाथ के सिर से अपना हाथ हटा लिया है। इसका इशारा तब मिला था दोस्तों जब भागवत लखनऊ आए थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ को मुलाकात का समय उन्होंने नहीं दिया था। ठीक वैसे ही कहा जा रहा है कि दिल्ली पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने मोदी शाह से मुलाकात का समय भी मांगा था पर समय दिया नहीं गया। कहने को व्यवस्था का हवाला दे दिया गया पर योगी आदित्यनाथ का दिल्ली पहुंचना, राजनाथ सिंह और जगदीप धनकड़ से मुलाकात करना कोई संयोग की बात नहीं है। यह एक बड़े प्रयोग की तरफ इशारा करता है
योगी के प्रयोग का आखिरी मौका भी नजर आता है, नहीं तो गोरखपुर का टिकट तैयार रखा है। दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ को रिप्लेस करने के लिए केशव प्रसाद मौर्य तैयार बैठे नजर आ रहे हैं। हाल ही में एक पोस्टर सामने आया। जिसने केशव प्रसाद मौर्य की बेताबी को जगजाहिर कर दियाउस पर इस पोस्टर में एक खास बात है। दोस्तों ध्यान से देखिए तब आपको पता चलेगा कि केशव ने किस नजाकत के साथ अपनी दावेदारी को पुख्ता करने की कोशिश की है। फिर आप नहीं समझे तो मैं आपको समझाता हूँ कि आखिरकार मसला क्या है? पोस्टर में लगी फोटो उसको ज़रा गौर से देखिये सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगी है, लगनी भी चाहिए, सबसे बड़े नेता हैं वो पार्टी के दूसरा नड्डा
साहब की लगी है फोटो फिर योगी आदित्यनाथ और फिर केशव प्रसाद मौर्य की फोटो आयें अगर आप सोच रहे है की यहाँ अमित शाह की फोटो नहीं लगी है। वो खेल वो नहीं है चाहे की फोटो का है। इस पोस्टर में होने का कोई मतलब भी नहीं है। कोई औचित्य नहीं। बात कुछ और है। पोस्टर में देखिए सबसे बड़ी फोटो नरेंद्र मोदी की लगी लगनी भी चाहिए क्योंकि वो पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। उनका ही चेहरा हर जगह चमकता है। उनका नाम हर कोई लेता है। उसके बाद नड्डा साहब की थोड़ी छोटी फोटो लगी है। वो पार्टी के फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और केंद्र में मंत्री भी हैं। अध्यक्ष को लेकर इस तरह की गहमागहमी पार्टी में मची हैं। वो सब देख रहे हैं। खैर, इस पोस्टर की बात करें तो प्रधानमंत्री से थोड़ी छोटी फोटो नड्डा
की लगी है, जो की पार्टी के डेकोरम को अगर देखेंगे तो ये सही भी है। लेकिन केशव ने अपनी फोटो योगी आदित्यनाथ के बराबर में लगाई। जबकि वो मुख्यमंत्री हैं जिसका कोई आधिकारिक पद नहीं होता है। ऐसे में सरकार में एक मंत्री, कैबिनेट मंत्री क्या मुख्यमंत्री के बराबर फोटो लगा सकता है
यहाँ ये सोचने वाली बात है कि डेकोरम क्या इसे सही कहता है, क्या ऐसा होना चाहिए? केशव खुद को क्या दिखाने की कोशिश कर रहे हैं? यहाँ इस पोस्टर से नजर आ रहा है क्योंकि अगर वो खुद की दावेदारी पेश नहीं कर रहे होते, सीएम योगी आदित्यनाथ से थोड़ी छोटी फोटो लगाते हैं। अगर धोखे से पोस्टर पर जो उनके चाहने वाले हैं, उन्होंने पोस्टर चस्पा भी कर दिया था
तो कम से कम पोस्ट ना करते इस पोस्टर को ठीक है। दूसरी जगह ये पोस्टर जाता है लेकिन केशव प्रसाद मौर्य उनका जो ऑफिस था। वो पहले इसे पोस्ट करता है और उसके बाद केशव प्रसाद मौर्य अपने जो ऑफिशल हैंडल हैं, जो पर्सनल हैंडल वो यूज़ करते है, एक्स का उस पर भी शेयर करते हैं। लेकिन केशव ने ऐसा कुछ नहीं किया। उस पोस्ट को भी शेयर किया उनके ऑफिस ने भी और उन्होंने भी सबसे बड़े मोदी, फिर नड्डा और फिर खुद को योगी के बराबर बताने के लिए केशव प्रसाद मौर्य इस पोस्टर का इस्तेमाल कर रहे हैं
ऐसे में संदेश साफ है। देशों ललायित है। दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ परेशान हैं। दोनों अपने सियासी पैतरों से कुर्सी की दौड़ लगाने में लगे हुए योगी को जहाँ कुर्सी बचानी है तो के शव को कुर्सी छीनी है, वो कुर्सी चाहिए। 2017 का वो दौर याद करिए जब केशव प्रसाद मौर्य का नाम सबसे आगे चल रहा था और कहा जा रहा था कि मुख्यमंत्री वही होंगे। जमीन पर उन्होंने काफी मेहनत की, काफी पसीना बहाया। लेकिन बावजूद इसके। दिल्ली को योगी पसंद आये और झट से जो है उनको कुर्सी पर बैठा दिया गया। केशव प्रसाद मौर्य कहीं पीछे रह गए
लेकिन केशव प्रसाद मौर्य को लग रहा है कि अब वह मौका है जब लोकसभा चुनाव के नतीजे कहीं ना कहीं भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ़ आये। भारतीय जनता पार्टी का जो जलवा था वो खत्म होता हुआ दिखाई दिया। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की अगर राजनीति देखेंगे पीडीए का जो एक सोटा चला। सियासी तौर पर भारतीय जनता पार्टी उस से बिलबिलाती हुई नजर आयी और सीटों के लिहाज से समाजवादी पार्टी आगे निकली और अखिलेश यादव उस के हीरो रहे। भारतीय जनता पार्टी पीछे रह गई। योगी आदित्यनाथ पर ऊँगली उठने लगी
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