मोदी राज में पाकिस्तान का पानी नहीं रोका जा सकता कार्रवाई के नाम पर झुनझुना थमाया है, इतने बांध ही नहीं हैं

यह साफ हो जाने के बाद की पहलगाम में 27 निर्दोष नागरिक को क नरसंहार की सबसे बड़ी वजह नकली विश्वगुरु नरेंद्र मोदी की लापरवाही नकली चाणक्य, अमित शाह का राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान ना होना और नकली जेम्स बॉन्ड अजित डोवाल का आलसी होना है सबको इंतजार है कि मोदी पाकिस्तान के साथ क्या करते हैं और क्या करते है। का मतलब क्या बड़ा करते हैं और इस समय जो सबसे बड़ा हुआ है वो ये कि पाकिस्तानी नागरिको को भारत छोड़ने के लिए बोल दिया गया है
आयोग के कर्मचारियों की संख्या कम कर दी गई है और सिंधु जल समझौते को रद्द कर देना बार बार कहा जा रहा है
ये हम पाकिस्तान को एक एक बूंद पानी के लिए तरसा देंगे हम सब चाहते हैं कि इस कायराना हरकत के लिए पाकिस्तान को सबक सिखाया जाना चाहिए, चाहे वो पाकिस्तान का पानी रूप लेना ही क्यों ना हो। इस पर किसी तरह के समझौते की कोई गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या भारत इस समय ऐसी स्थिति में है कि वो पाकिस्तान की तरफ जाते हुए पानी को रोक सके और इतने बड़े पैमाने पर रोक सके की 24,00,00,000 पाकिस्तानी प्यास से छटपटाने लगे इसका अगर एक लाइन में जवाब सुनना चाहते हैं तो सीधा सा जवाब है नहीं। भारत अभी ऐसा करने की स्थिति में नहीं है और यह बात नरेंद्र मोदी भी अच्छी तरह से जानते हैं।
अमित शाह भी जानते हैं और एस जयशंकर आज जानते हैं। अजीत डोभाल जानते हैं इस पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। लेकिन यहाँ ये बोलना जरूरी है। ये पहलगाम के कत्लेआम की अगले ही दिन बिहार में चुनावी मुद्दा बनाकर आगे नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर कार्रवाई के नाम पर झुनझुना थमाया है। ये बात सच है कि भारत ने पाकिस्तान को बता दिया है कि वह दोनों देशों के बीच सिंधु जल संधि को फिलहाल रोक रहा है, लेकिन ये होगा कैसे इसकी हवा तक नरेंद्र मोदी को नहीं है। 12 साल से वह हिंदू मुसलमान करने में इतने मसरूफ हो गए कि भूल ही गए पाकिस्तान की नकेल कैसे कश्मीर खाली भाषणबाज़ी ना
पुलवामा के बाद सोचा ना उरी के बाद सोचा और ना पहलगाम के बाद सोच पा रहे हैं। उन्होंने देश के नागरिको को झुनझुना थमाया है। अभी तक बस देखिये गृह मंत्री अमित शाह ने पहलगाम हमले के तीसरे दिन एक बैठक की। इस में जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल, विदेश मंत्री एस जयशंकर और दूसरे बड़े अधिकारी शामिल हुए। इस बैठक में ये मान लिया गया है कि हम पाकिस्तान का पानी रोकने की स्थिति में नहीं है।
सरकार ने माना है बकायदा लिहाजा बैठक में तय किया गया कि इस फैसले को कैसे जल्दी से लागू किया जा सकता है, इस पर विचार करते हैं। अभी जो फैसला हुआ है वह यह कि नदियों और बांधों से गाद निकालने का काम तुरंत शुरू किया जाएगा। समझ रहे है आप ये तैयारी इससे पाकिस्तान को जाने वाले पानी को बहुत मामूली स्तर पर रोका जा सकता है। इससे भारत को थोड़ा ज्यादा पानी मिलेगा और पाकिस्तान को थोड़ा कम पानी मिलेगा, बस यही होगा। लेकिन यह एक आध हफ्ते या एक आध महीने का प्रोजेक्ट नहीं है। रात निकालना भी सालों का प्रोजेक्ट है मतलब अगर आप सोच रहे है की एक आध महीने में पानी रुक जाएगा, पाकिस्तान का तो ऐसा नहीं होने जा रहा है। दूसरे बैठक में पानी को जमा करने के लिए अतिरिक्त ढांचा बनाने और जलविद्युत परियोजनाओं पर काम तेज करने पर बात हुई।
इससे सिंधु, झेलम और चुनाव नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत। ज्यादा कर पाए। ये तो साल 2 साल का भी प्रोजेक्ट नहीं है और जब मोदी जी 11 साल में एक ईंट नहीं जोड़ पाए नई तो अब तो चला चली की बेला है। अगर युद्ध स्तर पर भी काम हुआ तो कम से कम 10 साल लगेंगे और इस पर लाखों करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। तो कम से कम नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए तो। पाकिस्तान का पानी नहीं रुकने जा रहा है बल्कि कुछ नहीं होने जा रहा है। पानी के मामले में देखिये। बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री पाटिल ने मीडिया को बताया कि तीन विकल्पों पर चर्चा हुई है। गौर कीजिएगा पहला कम समय में पूरा होने वाला विकल्प, दूसरा मध्यम समय में पूरा होने वाला विकल्प और तीसरा लंबे समय के लिए काम। तो होने वाला विकल्प का कि पाकिस्तान को एक बूंद भी पानी ना जाए। ये रेटरिक है।
जल्दी ही पानी को रोकने और मुड़ने के लिए नदियों से गाद निकाली जाएगी। समझ रहे है आप सरकार हर संभव कोशिश कर रही है कि पाकिस्तान को पानी ना मिले, लेकिन सरकार में भी सबको पता है कि इस हरसंभव कोशिश का कोई नतीजा अगले छह महीने में भी निकलने वाला नहीं है। पाकिस्तान को एक एक बूंद पानी के लिए तरस आने की बात हवा हवाई है। ज़रा सुनिए। अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को पोल पट्टी खोल डाली हमने विशेषज्ञों से पूछा कि अगर हम सिंधु नदी का जल पाकिस्तान में जाने से रोकना चाहते हैं तो
उन्होंने कहा, हमारे पास कोई व्यवस्था नहीं है अगर हम आज से शुरू करें कि ऐसी व्यवस्था हम बना ले। तो पैसा कितना लगेगा वो तो अभी पूछिए ही मत। अगर पैसा पर्याप्त दे दिया जाए, पैसे के कारण 1 दिन भी काम न रुके तब भी 20 साल लगेगा। तब हम सिंधु नदी का जल रोक पाएंगे तो ऐसी परिस्थिति में हम यह कह दे रहे है की हम सिंधु नदी का जल रोक लेंगे और टेलीविजन के एंकर हमने सुना वो करे ऐसे बूंद बूंद के लिए तरसेगा पाकिस्तान एक गिलास शुद्ध पानी नहीं मिल पायेगा।
खेती नष्ट हो जाएगी, बिजली नष्ट हो जाएगी, ये हो जायेगा वो हो जायेगा गजब बता रहे थे। ऐसा लग रहा था
की जैसे प्याज़ तो लगाई गई पाकिस्तान को और इधर विशेषज्ञ बता रहे है की हमारे पास पानी को रोक लेने का कोई उपाय ही नहीं है। झेलम, चेनाब, ताप्ती, रावी कोई ऐसी नदियां नहीं है जिन पर आप रातों रात बांध बना लेंगे या उनकी धारा को मोड़ देंगे। या तालाब या झील में उसका पानी भर लेंगे। सच ये है की अभी भारत के पास पश्चिमी नदियों के पानी को जमा करने की पर्याप्त क्षमता ही नहीं है और इससे भी बड़ा सच। और समझिए की नरेंद्र मोदी कैसे देश को बेवकूफ बना रहे हैं। 1960 में हुए सिंधु जल समझौते के तहत भारत को 3.6 एमएफ पानी जमा करने की अनुमति है। आधिकारिक तौर पर लेकिन भारत के पास इतनी क्षमता भी नहीं है। अतिरिक्त पानी तो जाने दीजिए पिछले 11 साल के राज़ में मोदी ने इसमें एक लौटे पानी की भंडारण क्षमता का भी।
इजाफा नहीं किया है और भाषणबाजी बड़ी बड़ी और सुनिए। भारत पश्चिमी नदियों से 20,000 मेगावॉट बिजली पैदा कर सकता है, लेकिन इसमें से भारत बामुश्किल 3500 मेगावॉट बिजली पैदा करने की क्षमता हासिल कर पाया। लेकिन मोदी की पाकिस्तान को नकेल कसने की गंभीरता देखिए कि मनमोहन सिंह की शुरू की हुई किशनगंगा और रैटल जल विद्युत परियोजना का उद्घाटन करने के अलावा वो एक ही नहीं जोड़ सकें। आपको बता दें कि किशनगंगा जलविद्युत परियोजना 2007 में शुरू हुई थी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। ये परियोजना जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में किशनगंगा नदी पर शुरू की गई थी और इसे नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन एनएचपीसी को सौंपा गया था। इसी तरह परियोजना का निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ था। उस समय भी केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी।
ये परियोजना चिनाब नदी पर किश्तवाड़ जिले में फीता काटने के शौकीन नरेंद्र मोदी ने इसे पूरा करने की बजाय जो पहला काम किया वो ये है की 2022 में इसकी आधारशिला रख दें ताकि इतिहास से पुरानी सरकारों के काम को पूछा मिटाया जा सके। इसका काम आज तक पूरा नहीं। चलिए एक बार फिर से उसी सवाल पर आते हैं। क्या भारत पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी के प्रवाह को आसानी से रोक सकता है? फौरी तौर पर इसका संक्षिप्त तरण नहीं, कम से कम उस पैमाने पर नहीं जो पानी के उच्च प्रवाह के मौसम में कोई प्रभावी कमी ला सके। प्रवाह में। देखिये सिंधु जल समझौते के तहत छे नदियां आती है। इनको सिंधु घाटी की नदियां कहते हैं। समझौते में इन छे नदियों को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया। भारत को तीन पूर्वी नदियां रावी, ब्यास और सतलुज मिली। वहीं पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम चुनाव मिली। समझौते के तहत साझा बेसिन का लगभग 80% पानी इन्हीं तीन नदियों से आता है। ज़रा हालात को समझिए। और उस पर पाकिस्तान का पानी रोके जाने की वास्तविकता को भी जान लीजिए, क्योंकि हवा में उड़ने से तो काम नहीं चलेगा ना जो मोदी चाह रहा है कि देश उस पर भरोसा करें। देखिये सिंधु, झेलम और चुनाव बहुत बड़ी नदियाँ है। खासकर मई और सितंबर के बीच। जब बर्फ़ पिघलती है तो ये नदियां दसियों अरब। क्यूबिक मीटर पानी ले जाती है और अभी तो अप्रैल है साहब भारत के पास से नदियों पर जो भी इनफ्रास्ट्रक्चर है वह इस असीम को रोकने के लिए तिनके की तरह है। जैसे बगलिहार और किशनगंगा बांध तो है लेकिन कोई भी बांध इस तरह के पानी के वॉल्यूम को रोकने के लिए डिजाइन नहीं किया गया है। ये रन ऑफ द रिवर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट है
। मतलब बहाव से बिजली पैदा करते हैं। पानी को रोककर नहीं। इनमें पानी को स्टोर करने की भंडारण करने की क्षमता बहुत कम है। भले ही भारत अपने सभी मौजूदा बांधों में अधिकतम पानी रोक ले, लेकिन इससे 10% पानी भी नहीं रुकेगा। बूंद बूंद के लिए तरसाने की बात भूल जाएगी। दूसरी महत्वपूर्ण बात जो मुझे करनी है। अप्रैल से लेकर सितंबर के बीज सिंधु बेसिन की नदियों में इतना ज्यादा पानी आता है। कि अगर भारत उन्हें रोकना चाहे तो भी कश्मीर के हजारों वर्ग किलोमीटर इलाके में बाढ़ आ जाएगी। डूब जाएंगे वो इलाके लाखों एकड़ में खड़ी फसलें तबाह हो जाएंगी और ये पाकिस्तान से ज्यादा भारत का नुकसान होगा क्योंकि उच्च प्रवाह की अवधि के दौरान पश्चिमी नदियों में पानी की कुल मात्रा। इतनी ज्यादा होती है कि भारत अपने ही अपस्ट्रीम इलाकों को बाढ़ में डुबोए बिना इसको रोका नहीं जा सकता है। नहीं जा सकता है बांधा नहीं जा सकता है भारत पाकिस्तान को कुछ हद तक सिर्फ तब्बू प्रभावी तौर पर परेशान कर सकता है। पानी रोक सकता है जो बहुत भारी सर्दी पड़ती है और बर्फ़ कम पिघलने की वजह से। जब वो बहुत बड़े पैमाने पर इन नदियों पर इनफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करें ये रास्ता सीधा नहीं है। किसी भी बड़े पैमाने पर बांध या डाइवर्जन परियोजना को बनाने में बरसोंबरस लग जाएंगे। इसकी वित्तीय लागत इतनी ज्यादा है कि मोदी ने 11 साल के राज्य में इसके बारे में। कभी सोचा तक नहीं
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