चीन किनारे से देखता रहेगा या कूदेगा पाकिस्तान के साथ

चीन किनारे से देखता रहेगा या कूदेगा पाकिस्तान के साथ
चीन किनारे से देखता रहेगा या कूदेगा पाकिस्तान के साथ
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इस समय पूरा देश चर्चा के एक ही बिंदु पर पहुंचा दिया गया है इस्लामाबाद में भारत का झंडा कब लहराने जा रहा है टीवी चैनलों ने लाहौर से लेकर कराची और रावलपिंडी तक पर फतह दर्ज करा डाली और इस अपराध में नोएडा से चलने वाला हिंदी, अंग्रेजी का लगभग हर चैनल बराबर का भागीदार सरकार के मंत्रियों तक को टीवी चैनलों ने इस अपराध में भागीदार बना दिया
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किरण रिजिजू ने एक ट्वीट किया, भारतीय नौसेना ने कराची पर किया हमला जब सोशल मीडिया पर उन्हें इसके लिए पोसा जाने लगा तो उन्होंने ट्वीट डिलीट कर दिया इससे पता चलता है की सेना की जांबाजी के साये में राजनीति और पत्रकारिता का जो प्रसंग चल रहा है वो कितना भयावह हो सकता है
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हम लौट कर फिर से उन्हीं सवालों पर आते हैं पहला सवाल क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका है दूसरा सवाल क्या भारत पाकिस्तान के हिस्सों पर खासकर पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्ज़ा कर ले जा रहा है क्या कर चुका है और तीसरा और सबसे जरूरी सवाल क्या भारत पाकिस्तान से सीधे युद्ध में उतरा तो ये केवल दो देशों का मामला रह जाएगा या फिर चीन और तुर्की जैसे देशों को भारत के खिलाफ़ मोर्चा खोलने का मौका मिल जायेगा
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चलिए ज़रा इसको समझते इसमें कोई शक नहीं है कि देश एक आपातकालीन स्थिति में है इसमें भी किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि सेना बहादुरी से लड़ रही है हम सबको भारत की सेना पर पूरा भरोसा है और नाज है हम ये भी जानते हैं कि पाकिस्तान के लिए युद्ध में भारत के खिलाफ़ उतरने के साथ ही हार की उल्टी गिनती शुरू हो जाती
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लेकिन इस बात से तो आप भी इनकार नहीं कर सकते कि हर युद्ध की कीमत चुकानी होती है और हर नागरिक को चुकानी होती है हर रोज़ चुकानी होगी सरहद पंजाबी लड़ाई से इतर कई स्तरों पर लड़ाईयां लड़नी पड़ती है, लड़ी जाती है हम इसका विस्तार में अभी नहीं जाते, लेकिन इतनी सूचना तो आप तक भी पहुँच गई होगी कि भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार हो रही बमबारी की वजह से कई शहरों की उड़ान सेवाएं रद्द कर दी गई गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिखकर नागरिक सुरक्षा नियमों के तहत आपातकालीन शक्तियां का प्रयोग करने का निर्देश दिया है छूट दी
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अम्बाला, चंडीगढ़, पठानकोट, अमृतसर और जम्मू जोधपुर जैसे विशाल चमकते हुए शहर शाम होते ही अंधेरे में डूब जाते हैं और पूरी रात करोड़ों लोग दहशत में गुजारते दूसरी तरफ टेलीविजन न्यूज़ चैनल लगातार युद्ध उन्माद में फर्जी खबरें पर उस रहे शहादत के सिलसिलों के बीच उत्सव का माहौल बनाया जा रहा है
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ऐसे में कुछ पत्रकार बहुत गंभीर बातें भी कर रहे हैं एक दीर्घकालिक सोच के तहत आकलन कर रहे हैं परिस्थितियों का हम कोशिश कर रहे हैं की उन पत्रकारों सचेत नागरिक को समूहों की चिंताओं, विचारों और आकलन को आप तक पहुंचाया जाए
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इस कड़ी में हमने वरीष्ठ मराठी पत्रकार राजू परुलेकर की देश के नागरिको के नाम चिट्ठी अब तक पहुंचाई थी आज हमारा ध्यान दो लोगों की बातों पर टिका पहले आज तक समेत कई चैनलों में काम कर चूके मुंबई के बहुत वरीष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ और दूसरे हिंदी में टेलीविजन पत्रकारिता की न्यू रखने वाले पत्रकार अजीत साही अजित साही अब अमेरिका में रहते हैं और जियो पॉलिटिकल अफेयर्स पर बहुत पैनी नजर रखते
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राकेश कायस्थ चिंता जताते हुए लिखा है कि सूचना सुखद नहीं है चीजें तेजी से बिगड़ती जा रही है और पूरी तरह युद्ध जैसी स्थिति बन रही खबरों के आग्रही इन्टरनैशनल मीडिया का रुख करें तो समझ में आएगा कि दुनिया इस संकट को किस तरह देख रही है हर बात की चर्चा सोशल मीडिया पर ज़रूरी नहीं है शांति, प्रेम और सद्भाव बनाए रखें सीमावर्ती इलाकों के रहने वाले नागरिको के लिए प्रार्थना करें आप उनके लिए भले ही कुछ ना कर पाए ये सोचे जरूर की आप उनकी जगह होते तो कैसा महसूस करते
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देश सिर्फ नारों से नहीं बल्कि साझा सुख दुख से बनता है छोटे छोटे नागरिक कर्तव्यों से भी देश सेवा हो सकती है ये समय दूसरों की देशभक्ति की जांच करने का नहीं बल्कि अपने कर्तव्यों के निर्वाह का है
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वहीं अजीत साही ने इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की है कि क्या पाकिस्तान ये जंग हार सकता है वो लिखते हैं, ये इस पर निर्भर की हम हारने से क्या समझते हैं अगर भारत की मंशा पाकिस्तान की फौज को पूरी तरह तबाह करने की है टू वेट भी जंग का खतरा खड़ा हो जाता है एक बार परमाणु हथियार सामने आ गए तो नतीजे किसी यहाँ बहुत ज़रूरी सवाल उठाते हैं कि क्या भारत इतना बड़ा जोखिम लेने को तैयार हैं वो याद दिलाते हैं कि बगैर ज़मीनी फौज यानी थल सेना के किसी की
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जमीन छीनकर कब्ज़ा कर लेना नामुमकिन है वो आगाह करते हैं कि एक तरफ जहाँ सीमा के पास के सुनसान इलाकों में भी मुश्किलें आएंगी वहीं घनी आबादी वाले हिस्सों में अवाम सड़कों पर उतरी तो अलग तरह की मुश्किलें खड़ी होंगी यहाँ अजीत साही याद दिलाते हैं कि अमेरिका का मिलिट्री बजट भारत से 10 गुना बड़ा है 600 हजार से ज्यादा अमेरिका के सिपाही मारे गए थे
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तो क्या आप भारत इतना बड़ा रिस्क लेने के रास्ते पर बढ़ना चाहेगा अब तीसरा और आखरी सवाल जो अजीत जी ने उठाया है वो ये कि क्या भारत या जंग जीत सकता है यहाँ सवाल ये है की जितना किसे कहते हैं इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की फौज और आर्थिक ताकत दोनों पाकिस्तान से बहुत ज्यादा है लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान की फौज कई दशकों से लड़ाई के मैदान में, खासकर 1979 से अफगानिस्तान के बॉर्डर वाले इलाके में ऊपर से उसने आतंकवादियों को फौजी ट्रेनिंग देकर अलग से जो दस्ते खड़े किए हैं वो अलग

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दूसरी बात पाकिस्तान की आबादी और क्षेत्रफल दोनों ज्यादा है इसलिए पूरी तरह पाकिस्तान पर कब्जा करना शायद बहुत व्यावहारिक नहीं होगा गौर कीजिए, भारत ने पाकिस्तान को 1965 और 1971 में दो बार सीधी जंगों में हराया था 1971 में तो इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में ही बांट दिया था
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फिर 1999 में कारगिल में भी इंडिया ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया फिर भी लाल बहादुर शास्त्री से लेकर इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी तक भारत ने नियंत्रण रेखा का हमेशा सम्मान किया तो इसके पीछे कुछ ठोस वजहें हैं यहाँ अजीत साही एक और जरूरी सवाल उठाते मान लीजिये अगर भारत ये लड़ाई जीत भी जाए और पाकिस्तान से अपनी शर्तें मनवा भी ले तो क्या इससे हमेशा के लिए इलाके में अमन कायम हो जाएगा शायद नहीं, इसे समझने के लिए इतिहास की तरफ झांकना होगा
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जब पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं थे तब भी वो 1965 और 1971 के दो करारी शिकस्त से भी नहीं सुधरा अब तो उसकी सैन्य पॉलिसी, उसकी कमी, पहचान और जियोपॉलिटिक्स का रवैया अलग ही किस्म का है
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वहाँ लोकतंत्र नाम की कोई चीज़ नहीं है और पाकिस्तान की सरकारे सेना और आईएसआई की कठपुतलियों की तरह काम करती है पाकिस्तान में प्रधानमंत्रियों को सेना की शह पर लटका दिया जाता है देश छोड़कर भागना पड़ता है और जेलों में डाल दिया जाता है
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ऐसे में यह उम्मीद करना कि एक और हार पाकिस्तान की फितरत बदल देगी, संभव नहीं है यहाँ सवाल उठता है कि क्या चीन इस झगड़े में दखल दे सकता है अजीत साही लिखते हैं अगर इंडिया पाकिस्तान की जमीन पर कब्जे के करीब पहुंचा तो चीज़ जरूर कोई ना कोई कदम उठाएगा आर्थिक, सियासी या शायद फौजी भी चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत और ज्यादा असर वाला मुल्क बने यही दुनिया की हकीकत है जो ताकतवर मुल्क होते हैं
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वो अपने पड़ोसी को बगैर रोक टोक मजबूत नहीं होने देते तो ऐसी परिस्थितियों में सरहद पर जो भी हो रहा है। वो हमें कहाँ ले जाएगा और भविष्य पर कैसी छाप छोड़ेगा अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतिहास में कुछ लोग अमर जरूर हो जाएंगे गलत कारणों से या सही कारणों से इसका फैसला हम और आप नहीं इतिहास करेगा
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